दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, February 10, 2008

पुस्तक मेला, आवारगी और एक तट छोडती नाव

मैं इस वक़्त भी उसी जगह पर हूँ



मैं इस वक़्त भी उसी जगह पर हूँ

जहाँ मेरे दिल का समुंदर
तुम्हारे शानदार जहाज़ को रुख़्सत होते देखकर
ठिठक गया था


आसमान तब कुछ और नीचे उतर आया था

पहाडों ने तुम्हें जाने के लिये जगह दे दी थी

मैं अब भी उसी जगह पर हूँ

इस इंतज़ार में
कि जिस शहतूत के दरख़्त को
मैंने आँखों से ओझल होते देखा है

वह लौटते हुए कैसा लगेगा!
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पिछ्ला हफ़्ता महान अप्रत्याशाओं और सुखद आश्चर्यों से भरा गुज़रा. मेरी कुछ माँगी हुई मुरादें पूरी हुईं और बिनमाँगी हुई भी. भाई अशोक पांडे आए तो वो अपने साथ वह चेक भी लाए जिसने आपके साथ पिछले दिनों टूट गये रिश्ते को फिर से शुरू करने का ज़रिया बनाया. मैंने कहा था बिल अदा नहीं कर पा रहा हूँ और वो बोले "अच्छा" और जब वो बोले मैं अदा करता हूँ तो मैंने कहा "ठीक है".

बानगी सुनिये





लाए तो वो अपने साथ बहुत कुछ ऐसा थे जिसे मैं क्या कहूँ, आप मुनीश की ज़बानी पहले ही पढ चुके हैं. वो एक शानदार घुमक्कड और परले-दर्जे के आवारा हैं. आज उनका साथ छूट गया. और लगा कि शहर से आवारगी का मसीहा कूच कर गया. इस बीच कई और जाने-अनजाने दोस्तों ने मेरे बिल की अदायगी का प्रस्ताव रखा है जिनके प्रति मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ.
मुनीश ने पुस्तक मेले और इसके बहाने जुटे कुछ ब्लॉगरों का हाल तो बताया ही है. इस बीच उन्होंने एक छापामार रिकॉर्डिंग भी कर डाली. सुनिये इसमें अशोक पांडे, मनीषा, मुनीश और मैं क्या-क्या फेंक रहे हैं-

9 comments:

azdak said...

अच्‍छा है. ठीक तो है ही.

काकेश said...

अच्छा !! ठीक है...

दूसरी बातचीत भी अच्छी लगी.

पारुल "पुखराज" said...

इत्ता सारा "अच्छा" और इत्ता सारा "ठीक" बढ़िया लगा । वार्ता पसंद आयी

कंचन सिंह चौहान said...

मैं अब भी उसी जगह पर हूँ

इस इंतज़ार में
कि जिस शहतूत के दरख़्त को
मैंने आँखों से ओझल होते देखा है

वह लौटते हुए कैसा लगेगा!
sundar

मुनीश ( munish ) said...

Pls. compare the content and quality of this recording with today's news channel discussions friends and kindly let us know where we stand. aapki alochna ka bhi hum vahi samman karenge jo purani filmo ki maa Sulochna ka karte hain ji!!

Anonymous said...

Celebration of the check from Ashok is great but do you believe in privacy or not. Its fairly inscure to publish check details (Akshok's) for public view in this digital world.

You know what I mean.

BTW I like your blog. Keep it on.

इरफ़ान said...

Dear Anonymous, Dont worry I had made necessary manipulations in the document.

Unknown said...

इरफ़ान - सोचा न था अशोक के साथ आप सब भी मिलेंगे - शहतूत के पेड़, देवदार के दरख़्त और इमली आम अमरुद के बिरवे - गुलज़ार चमन को एक और सलाम ; अशोक कबाड़खाना चलाएं और आप कारूं का खजाना share करें; पहाड़ बीच बीच में जगह देते रहें [मजे हम लोगों के ] - सादर [ :-)] - मनीष

siddheshwar singh said...

आज बहुत दिनों बाद इसे फ़िर से सुन रहा हूं.
'अच्छा'
-तो' ठीक ' है!