दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, January 26, 2008

एक छोटी सी बात का इतना प्रचार?

कुछ टूटी हुई, कुछ बिखरी हुई
ब्लॉग-चर्चा में आज इरफान का ब्लॉगटूटी हुई बिखरी हुई ‍‍
-मनीषा पांडेय
25 जनवरी 2008, वेब दुनिया

आज ब्‍लॉग-चर्चा में हम जिस ब्लॉग को लेकर हाज़िर हुए हैं, वह कई मायनों में अब तक यहाँ चर्चित ब्लॉगों से भिन्‍न है। सबसे पहली बात तो यह कि ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ नाम का यह ब्लॉग सबसे कम उम्र का ब्लॉग है। इसे चलाते हैं - स्वतंत्र पत्रकार और मीडियाकर्मी इरफान। मई, 2007 में मोहल्‍ला फेम ब्‍लॉगर अविनाश की मदद से इरफान का ब्‍लॉग की दुनिया में पदार्पण हुआ और फिर प्रकाश में आया - ‘टूटी हुई, बिखरी हुई’। नाम पर न जाएँ, नाम भले टूटा-फूटा हो, ब्‍लॉग फिलहाल एकदम दुरुस्‍त है। इसीलिए आज इस कॉलम में आप सबसे रू-ब-रू है।

ब्‍लॉग का नाम जितना अजीब है, यूआरएल उससे भी ज्‍यादा पेचीदा। ब्‍लॉगस्‍पॉट के पहले अँग्रेजी के 21 अक्षर टाइप करने में ब्‍लॉग पढ़ने वाला खुद ही ‘टूटी हुई, बिखरी हुई’ हो जाता है। लेकिन एक बार ब्‍लॉग खुले तो फिर ऐसी जान लौटती है कि घंटों उस ब्‍लॉग पर कब बीते, पता ही नहीं चलता।
इरफान इसकी सफाई कुछ यूँ देते हैं, ‘मुझे तब यह नहीं मालूम था कि ब्लॉग टाइटिल और यूआरएल अलग-अलग भी हो सकते हैं। ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ हिंदी के प्रख्यात कवि स्वर्गीय शमशेर बहादुर सिंह की एक कविता है। शमशेर की स्मृति को समर्पित यह ब्लॉग कविताओं का नहीं है। यह अलग बात है कि कविताएँ भी यहाँ हैं। ख़ुद शमशेर की उपरोक्त पूरी कविता अपने अँग्रेज़ी अनुवाद के साथ यहाँ एक स्थाई उपस्थिति बनाए हुए है।’
आज ब्‍लॉग-चर्चा में हम जिस ब्लॉग को लेकर हाज़िर हुए हैं, वह कई मायनों में अबतक यहाँ चर्चित ब्लॉगों से भिन्‍न है। सबसे पहली बात तो यह कि ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ नाम का यह ब्लॉग सबसे कम उम्र का ब्लॉग है। इसे स्वतंत्र पत्रकार और मीडियाकर्मी इरफान चलाते हैं।
इरफान दिल्ली में रहते हैं। उनका परिचय उनके ब्लॉग पर कुछ इन शब्‍दों में पढा जा सकता है, ‘मैं मिर्ज़ापुर के घुरमा मारकुंडी में पैदा हुआ। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ा और समकालीन जनमत के साथ पटना होता हुआ दिल्ली पहुँचा। यहाँ स्वतंत्र पत्रकारिता, लेखन और ऑडियो-विज़ुअल प्रोडक्शन्स में लगा हुआ हूँ।’ इरफान को आश्चर्य होता है कि उन्होंने दोस्तों से ज़्यादा दुश्मन बनाए हैं और अपने व्यवहार में हमेशा एक कटुता और मुँहफटपन लिए रहते हैं, फिर भी उनमें और उनके ब्लॉग में लोगों की जिज्ञासा क्यों है, जबकि उनके अनुसार उनके ब्लॉग में ऐसा कुछ है भी नहीं, जिसका इंतज़ार लोगों को हो।
वे कहते हैं, ‘मैंने तो मज़े-मज़े में इसे शुरू किया है और आइडिया यही है कि मैं अपनी बरसों से समेटी-सँजोई चीज़ों का एक व्यवस्थित रैक बनाऊँ। इसी क्रम में मैंने शुरुआती पोस्टें जारी कीं, जिनमें किसी की दिलचस्पी क्यों होती।
‘पुराने ईपी और एलपी के कवर्स, गुज़रे ज़माने के ब्रॉडकास्टर्स, फिल्मी लोग और साहित्यकारों की तस्वीरें.... मुझे जो कुछ भी दबा-छिपा मिल जाता, उसे मैं सँजोने लगा। सच पूछिए तो ‘टूटी हुई बिखरी हुई’ पूरी तरह किसी भी एक विधा या फोकस का ब्लॉग नहीं है। वो ये भी है और वो भी है या कहें ये भी नहीं है और वो भी नहीं।’
इरफान आगे कहते हैं, ‘बहरहाल धीरे-धीरे मैंने कुछ लिखने की कोशिश की, जिसका बहुत ख़राब रिस्पांस देखकर लगा कि यहाँ समझदारी की बातें करना बेकार है। उसके बाद से मैं अब ज़्यादातर साउंड पोस्ट करने का काम करता हूँ। इसमें भी लालच यही रहता है कि जो कुछ मुझे सुनने के लायक लगता है, उसे दोस्तों के साथ शेयर करूँ। वैसे भी मेरा मौजूदा पेशा मुझे इस ओर उद्धत करता है कि खुद सुनने के अलावा मैं सुनाऊँ भी।’
इरफान रेडियो जॉकी भी हैं। वे कहते हैं, ‘सुनाने का एक बडा फोरम होने के बावजूद मेरे सामने कुछ बंदिशें भी हैं और एक ख़ास तरह का फिल्मी म्यूज़िक बजाने के अलावा मेरे सामने कोई रास्ता भी नहीं है। ऐसे में ब्लॉग ने मुझे यह अवसर दिया है कि मैं इस तरह का संगीत भी लोगों तक पहुँचा सकूँ। आलोक धन्‍वा, नरेश सक्सेना, उदय प्रकाश, इब्बार रब्बी, विनोद कुमार शुक्ल, मंगलेश डबराल और चंद्रकांत देवताले जैसे हिंदी के कवियों की उन्हीं के स्वर में कविताएँ हों, आम लोगों की बोलती गाती आवाज़ें हों, देवकीनंदन पांडे और ज़िया मोहिउद्दीन के नायाब पाठ हों या मेरी पसंद के गीत... इन सब चीज़ों के लिए एफएम रेडियो में स्थान नहीं है। मैं इस तरह ब्लॉग के माध्यम से एक वैकल्पिक रेडियो चलाने का भी आंशिक सुख लेता हूँ।’
ब्लॉग विधा के बारे में अपनी शुरुआती प्रतिक्रिया को याद करते हुए वे कहते है, ‘मुझे शुरू में लगता था और आज भी यही लगता है कि यह थोड़े से उन लोगों का शग़ल है, जिन्हें आत्म-प्रदर्शन पसंद है। मैं ख़ुद भी प्रदर्शनवादी हूँ तो यह मेरी दबी इच्छाओं का वाहन बना हुआ है।’
‘टूटी हुई बिखरी हुई’ की सैर करते हुए अचानक आपको गैब्रिएला मिस्‍त्राल की कविता दिख जाएगी, तो कहीं फहमीदा रियाज की कोई गुनगुनाती हुई-सी नज्‍म। पुराने लेखकों और साहित्‍यकारों की कुछ दुर्लभ तस्‍वीरें भी यहाँ देखी जा सकती हैं। इन्‍हीं सबके बीच कहीं इरफान की कविता से भी साबका पड़ता है -

चाँद और लुच्चे
ये एक सँकरा रास्ता था
जहाँ पहुँचने के लिए
कहीं से चलना
नहीं पड़ता था

या ये एक मंज़िल थी
समझो
जाती थी बस...
फिर रात गहराती थी
और चांद की याद भी किसी को नहीं आती थी

एक दिन
जब धूल के बगूलों पर सवार
कुछ लुच्चे आये
(वो ऐसे ही आते-जाते हैं सब जगह बगूलों पर ही सवार)

बाल बिखरे हुए थे उनके

बोले-
नींद खुलने से पहले ही जागा करो...
और ऐसी ही कई बातें.

चांद उत्तर के थोड़ा पूरब होकर लटका हुआ था

किसी को परवाह भी न थी
उन्हें भी नहीं

छटनी में छांटे गये ये लुच्चे
बस छांद की थिगलियां
जोड़ते रहते हैं
रातों में.
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इरफ़ान
12 जनवरी 1994


कहीं रुबर्तो हुआरोज की शीर्षकहीन कविता नजर आती है -

शीर्षकहीन कविता

अपने हाथों का तकिया बना लो.

आकाश अपने बादलों का
धरती अपने ढेलों का
और गिरता हुआ पेड़
अपने ही पत्तों का तकिया बना लेता है.

यही एकमात्र उपाय है
गीत को ग्रहण करने का
निकट से उस गीत को जो
पड़ता नहीं कान में,
जो रहता है कान में.
एकमात्र गीत जो दोहराया नहीं जाता.

हर व्यक्ति को चाहिये
एक ऐसा गीत जिसका
अनुवाद असंभव हो.

रोबर्तो हुआरोज़ अर्जेंटीना,1925
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अनुवाद:कृष्ण बलदेव वैद



तो कहीं ब्रेख्‍त की आवाज सुन पड़ती है -

मैं सड़क के किनारे बैठा हूँ
ड्राइवर पहिया बदल रहा है

जिस जगह से मैं आ रहा हूँ वह मुझे पसंद नहीं
जिस जगह मैं जा रहा हूँ वह मुझे पसंद नहीं

फिर क्यों बेसब्री से मैं
उसे पहिया बदलते देख रहा हूँ.

इसके अलावा भारत एक खोज, सस्ता शेर और सिर्फ इरफान उनके ब्‍लॉग हैं। उनका पसंदीदा ब्‍लॉग अशोक पांडे द्वारा संचालित ब्‍लॉग ‘लपूझन्ना’ है। ब्‍लॉग पर क्‍या लिखते हैं, के जवाब में वे कहते हैं, ‘ब्लॉग पर लिखने के लिये विषयों का चुनाव ज़्यादातर परिस्थिति और मूडवश ही करता हूँ। कोई तयशुदा नियम नहीं है।’
हिंदी ब्‍लॉगिंग के बारे में इरफान कहते हैं, ‘हिंदी ब्लॉगिंग फिलहाल तैयारी और जुगुप्सा के दौर से गुजर रही है। टीवी या प्रिंट माध्यमों से इसमें एक ही भिन्नता है कि यह टीआरपी और सर्कुलेशन के दबावों से पूर्णत: मुक्त है।’
लेकिन इरफान ब्‍लॉगिंग को आने वाले समय की विधा नहीं मानते। वे कहते हैं, ‘आने वाले समय में चुनिंदा और विषय-भाव केंद्रित ब्लॉग ही सार्थक कर रहे होंगे। इसमें वो सब बुराइयाँ (ज़्यादा) और अच्छाइयाँ (कम) झलकेंगी, जो समाज में हैं, और निजी कैथार्सिस को रोकना कौन चाहेगा? ब्लॉगिंग से पत्रकारिता अपने लिए कच्चा माल लेगी।’
क्‍या आने वाले समय में इंटरनेट और ब्‍लॉगिंग इलेक्‍ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर भारी पड़ सकते हैं, के जवाब में इरफान कहते हैं कि ऐसा हो सकता है, जब गंभीर पत्रकार अपने प्रेस क्लबों से ब्लॉग का रुख़ करेंगे। ब्‍लॉगिंग से हिंदी भाषा का विकास भी होगा। ग्लोबलाइज़ेशन की बुराइयों पर सहमत लोग अपने दोस्तों को पहचान सकेंगे।

इरफान एक ऐसे ब्‍लॉग की भी कल्‍पना करते हैं, जहाँ उनके मोहल्ले का कूडा उठाने वाला भी स्थान पा सकेगा।

ब्‍लॉगिंग के माध्‍यम से इंटरनेट की दुनिया में जो खजाना तैयार हो रहा है, उसमें एक है, टूटी हुई बिखरी हुई । समय के सीमा में बँधी कोई प्रासंगिता इस ब्‍लॉग की विवशता नहीं है। यह ब्‍लॉग हर समय प्रासंगिक है। दुर्लभ चित्र, कविताएँ, दस्‍तावेज और गीत हमेशा प्रासंगिक हैं।

ब्‍लॉग - टूटी हुई बिखरी हुई
URL - http://tooteehueebikhreehuee.blogspot.com/

ब्‍लॉग - सस्‍ता शेर
URL -www.ramrotiaaloo.blogspot.com

ब्‍लॉग - सिर्फ इरफान
URL - www.sirfirf.blogspot.com

ब्‍लॉग - भारत एक खोज
URL - www.ekbanjaragaaye.blogspot.com

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