दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Thursday, November 8, 2007

रेडियो रेड और क़िस्सागोई: सआदत हसन मंटो का अफ़साना नंगी आवाजें


मंटो की कहानियाँ मेहनतकश जनता के मनोजगत का दस्तावेज़ भी हैं. सुनिये नंगी आवाज़ें और महसूस कीजिये उस मानवीय करुणा का ताप, जिसे बाहर रहकर पेश कर पाना बडे जिगरे का काम है.

शुरुआत में आवाज़ें अरशद इक़बाल और मुनीश की हैं.

क़िस्सागो: इरफ़ान

Duration: 20 Min.



11 comments:

Anonymous said...

क्या बात है भाई साहब. यह तो आपने खजाना ही खोल दिया है. अब तो हमें इंतजार रहने लगा है कि आज कौन सी कहानी मिलेगी. धन्यवाद.

Anonymous said...

यह तो बहुत मेहनत का काम कर रहे हैं आपलोग. क्रूपया बताएं कि इन कहानियों को क्या हम सीडी पर भी प्राप्त कर सकते हैं?

Anonymous said...

कमाल का काम. बधाई.

Anonymous said...

आपसे आग्रह है कि निर्मल वर्मा की कहानी लाल टीन की छत प्रस्तुत करें. बहुत अच्छा अनुभव.

Anonymous said...

sun rahaa hoon.great.

Yunus Khan said...

भाई मेरे लाल टीन की छत तो उपन्‍यास है ना ।
वैसे क्‍या अदायगी है । मज़ा आया । पर भैया बीस मि0 पच्‍चीस मि0 इत्‍ती देर सुनने के
लिए फुरसत निकालनी पड़ती है ।
मतलब ये कि अब आप ऐसे आयोजन हफ्तवार करें तो हमें सहूलियत रहेगी ।

VIMAL VERMA said...

बड़ा अच्छा लगा, आवाज़ें भी मोहक हैं, बापरे और क्या क्या हो सकता है? वाकई मेहनत का काम है, अब किसकी बारी है, बताइयेगा, अच्छा काम कर रहे हैं, शुक्रिया।

Anonymous said...

भाई यूनुस आप ठीक कहते हैं.मेरा मतलब निर्मल वर्मा की किसी कहानी से था. माफ़ करो.

आनंद said...

बहुत अच्‍छी कहानी और बहुत बेहतरीन किस्‍सागोई। मज़ा आ गया। - आनंद

Anonymous said...

इरफ़ान,
मज़ा आ गया.मंटो के पुराने पढ़े हुए अफ़साने बिल्कुल नये और ताज़ा लगे.एक अच्छे अंदाज़े बयां के साथ, असर कई गुना बढ़ गया.उदय प्रकाश किसी ज़माने में हमारे पड़ोसी थे लिहाज़ा उनकी बहुत सी यादें भी ताज़ा हो गयीं.हम तो आपके मद्दाहों में हो गये. अल्लाह आपको ऐसे और कामों की सलाहियत दे...बहुत अच्छा लगा. हमने अरोमा को भी यह लिंक भेजा उन्होंने और उनके शौहर अयाज़, दोनों ने बहुत शौक़ से सुना. बल्कि पूछा भी है कि अगर ये हमारे इंटर्व्यू का पहला हिस्सा है तो दूसरा हिस्सा कहां है?वो कैसे सुन सकते हैं?
और क्या लिये बैठे हैं? एक एक करके सब भेजिये.वक़्त को बेहतर गुज़ारने के लिये इससे अच्छा और क्या बहाने हो सकते हैं..
ख़ैर अंदेश
मेहनाज़ अनवर

सुशील छौक्कर said...

इरफान भाई

कमाल का काम कर दिया। किन शब्दो से शुक्रिया किया जाऐ समझ नही आता। मंटो की आत्मा सच में शकून पा रही होगी यह काम देख कर। मै फिर से मंटो के अफसानो का आनंद ले सकूँगा।