दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, November 25, 2007

अविनाश जी ने ग़ज़ल क्यों छेड़ी ? सुनिये तो सही



परत-दर-परत रात खुल रही है

एक तारा कुछ तारों से
आंख मिचोली खेल रहा है
चिडिया का एक बच्चा
घोंसले में चोंच मार रहा है
दरख़्त का एक पत्ता
हवा से ठिठोली कर रहा है
एक चूहा रोशनी के क़तरे कुतर रहा है
झील में एक लहर किनारा छू रही है
आसमान से उतरती हुई ठंडक
शबनम का रूप ले रही है
परत-दर-परत रात खुल रही है

एक हर्फ़ दूसरे हर्फ़ की बांह पकड़ रहा है
एक लम्हा दूसरे में घुल रहा है
एक ख़याल जुंबिश ले रहा है
एक ख़्वाब कपड़े पहन रहा है
एक आवाज़ लफ़्ज़ बन रही है
एक धड़कन नग़मा बुन रही है

परत-दर-परत रात खुल रही है.


मेंहदी हसन ..........Dur.5Min.13Sec.

2 comments:

मीनाक्षी said...

बहुत खूब .... एक धड़कन गज़ल बुन कर परत दर परत बहुत कुछ गई. अब हमारे दिल में भी एक ख्याल जुंबिश ले रहा है कि हम भी संगीत की ही आभासी दुनिया में आ जाएँ.. :)

अभय तिवारी said...

गज़ल बढ़िया है! बड़े दिनों बाद सुनी..