त्रिलोचन जी से मुलाक़ात का सचित्र विवरण और उनकी कुछ रचनाएँ आप पहले भी यहां पढ चुके हैं.
लीजिये सुनिये कोई बारह साल पुरानी रिकॉर्डिंग का एक हिस्सा. बातचीत कर रहे हैं समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय और बीच में एक आध सवाल चन्द्रभूषण के हैं. यह जमावडा जनमत के बी-30, शकरपुर वाले ऑफ़िस में रोज़ कुछ नये गुल खिलाता था.
रिकॉर्डिंग की दयनीय अवस्था हमारी मुफ़लिसी और शानदार फ़क़ीरी का दस्तावेज़ है. सुनते समय क्लैरिटी का अभाव महसूस हो तो बूढ-पुरनियों की बात का स्मरण कीजियेगा कि 'घी का लड्डू टेढै भला.'
लीजिये सुनिये कोई बारह साल पुरानी रिकॉर्डिंग का एक हिस्सा. बातचीत कर रहे हैं समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय और बीच में एक आध सवाल चन्द्रभूषण के हैं. यह जमावडा जनमत के बी-30, शकरपुर वाले ऑफ़िस में रोज़ कुछ नये गुल खिलाता था.
रिकॉर्डिंग की दयनीय अवस्था हमारी मुफ़लिसी और शानदार फ़क़ीरी का दस्तावेज़ है. सुनते समय क्लैरिटी का अभाव महसूस हो तो बूढ-पुरनियों की बात का स्मरण कीजियेगा कि 'घी का लड्डू टेढै भला.'
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इस पॉडकास्ट को जो नहीं सुनेगा उसे सपने में तीन मुंह वाला राक्षस दिखाई देगा और जो इसे सुनते हुए क्वालिटी पर सिर धुनेगा उसके सीने पर साँप लोटेगा.
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Dur. 29Min 43Sec
7 comments:
मित्र बातचीत दिलचस्प हो रही थी.. मगर दस मिनट के आस पास जा कर रुक गई किसी भी तरह से आगे नहीं बढ़ी.. कुछ कीजिये..
कैसे-कैसे विरोधाभास देखने को मिल जाते हैं?
जो व्यक्ति अशोक सिंहल को 'अधार्मिक' कहता है; खुद चन्द्रभूषण की 'जाति' पूछने से अपने को नहीं रोक पाता।
रही बात रूढ़ि की। मान लिया हमारे पूर्वज मांस-भक्षण करते थे। क्या इस प्रवृति को जारी रखना रूढ़ि नहीं होगी?
ये भी विचित्र लग रहा है कि जब त्रिलोचन के दूसरे मार्क्सवादी गुरुभाई तुलसी को पानी पी-पीकर गाली देते हैं; त्रिलोचन, तुलसी की प्रशंशा के पुल बांधते हुए सुनायी पड़ रहे हैं। इसे 'मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना' कहा जाय अथवा ये कहा जाय कि मार्क्सवाद की 'सही समझ' ही किसी को नही है?
Thanks.
abhay mitra,
kripayaa dhairya rakhein yah play hogaa. agar phir bhee na huaa to meraa durbhaagya kahaa jaayega.
बड़ी लगन से पहुंचा यहां तक मगर तकनीकी गड़बड़ी से सुना नहीं जा सका कुछ। फिर करूंगा प्रयास ..
rochak hai.
इरफ़ान भाई, मैंने बहुत कोशिश की मगर फ्लेश प्लेयर काम नहीं किया, सो मैं कुछ भी सुन नहीं सका. कृपया उपाय बताएं, ताकि मैं भी मंटों आदि की कहानियों का लुत्फ़ उठा सकूँ.
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