मेहनाज़ अनवर का नाम न सिर्फ़ पुरानी स्टाइल के रेडियो से जुड़ा हुआ है बल्कि वो FM सुननेवालों के लिये भी बेहद जाना-पहचाना नाम हैं. एफ़एम ब्रॊडकास्टिंग की जब शुरुआत हुई तो ग़ज़लों के प्रोग्राम आदाब और आदाब अर्ज़ है से उन्होंने नये सुनने वालों से एक बेहद अपनापे का रिश्ता बनाया, लोगों में ज़बान का शऊर पैदा किया और एक नये अन्दाज़-ए-बयां को मक़बूल बनाया. सुननेवालों से जज़्बाती रिश्ता बनाना कोई उनसे सीखे.वो जितनी दिलकश आवाज़ की धनी हैं उतनी ही खूबसूरत शख्सियत भी हैं.
आइये सुनतें हैं उन्ही की आवाज़ मे कुछ गुज़री बातें.पहला हिस्सा.
यह कहते हुए मैंने रेडियोनामा पर 28सितंबर 2007 को मेहनाज़ आपा के इंटरव्यू का एक शुरुआती हिस्सा जारी किया था. आज, जब कि रेडियो की वापसी की बातें बडे ज़ोर-ओ-शोर की जा रही हैं ; ये लाज़िमी हो जाता है कि रेडियो प्रोफ़ेशन पर एक मुकम्मल नज़र डाली जाए. बग़ैर इसके यह वापसी एक बेसिर पैर की क़वायद ही साबित होगी. कोई तीस बरस से रेडियो बिज़नेस में रही आई मेहनाज़ ने बहुत कुछ पुराने ब्रॉडकास्टर्स से सीखा और इस बीच रेडियो ब्रॉडकास्टिंग को मुतास्सिर किया है. लखनऊ की रहने वाली मेहनाज़ ने जेएनयू से बाद की पढाई की. उनकी दो बेटियां आज ख़ुद देश और विदेश के एफ़एम रेडियो पर लोकप्रिय प्रोग्राम पेश करती हैं.
तो पेश है वह पूरा और अनएडिटेड इंटरव्यू. सुनिये कि मेहनाज़ साहेबा के रेडियाई सफर में क्या-क्या मरहले आये और क्या उनके observations हैं.
मेहनाज़ अनवर के घर पर 26 फ़रवरी 2005 को रिकॉर्ड किया गया.
Dur. 50Min 54Sec
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यह पोस्ट कबाड़ख़ाना पर भी अशोक की इच्छा से दिखाई गई है. कुछ टिप्पणियो के लिये यहां भी देख सकते है.
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ऑल इंडिया रेडियो: कुछ भूले बिसरे चित्र
इक़बाल वारसी और अज़रा क़ुरेशी
मुजीब सिद्दीक़ी (बीच में), स्टूडियो से बाहर आते हुए
प्रसारण के क्षण
पुरानी मशीनों पर रिकॉर्डिंग
उर्दू के प्रख्यात व्यंग्यकार मुज्तबा हुसैन
मुजीब सिद्दीक़ी (बाएं) प्रसारण के बीच
मरियम क़ाज़मी (बाएं)
जावेद अख़्तर
बाएं से, मुजीब सिद्दीक़ी, आई.के.गुजराल, रेवती सरन शर्मा और अन्य
बशीर बद्र
अमृता प्रीतम के साथ ऑल इंडिया रेडियो का स्टाफ़
8 comments:
बेहतरीन इरफान! यकीन करो या न करो तीन दफा सुन चुका हूँ इस इंटरव्यू को। बहुत सारी बातें याद आयीं। ब्रुक हिल में सुबह रेडियो से होती थी। और आकाशवाणी की उर्दू सर्विस से। यार लोग कहा करते थे कि अगर आकाशवाणी की उर्दू सर्विस न होती तो हम लोग उठ ही नहीं सकते थे। मेहरबानी दोस्त!
मेहनाज़ जी की इस बात से मैं शत प्रतिशत सहमत हूं कि बोलने के लिये पढना लिखना जरूरी है. बधाई.
Now I can understand why she is sounding so humble and sweet. I like the way she introduced her hubby as Mehboob.
आइये कहें कि उर्दू सर्विस कई मायनों में सारी सेवाओं से बेहतर है. साधुवाद इस सुन्दर प्रस्तुति के
आज देखा कि दुनिया सचमुच छोटी हो गई है. यहाँ मुजीब सिद्दीकी साहब और मरियम काज़िमी जी के चित्र देखे तो पुराने दिन याद आ गए,लोधी कालोनी में हम पड़ोसी हुआ करते थे. शादी के बाद माँ का घर छूटा तो उनसे भी नाता टूट गया. मेहनाज़ जी और आपकी बातचीत में उर्दू की मिठास ने मोह लिया.
अरे आप तो कमाल पे कमाल किये जा रहे है, पांचवीं तस्वीर में मुजीब साहब के साथ फ़िल्म निर्देशक विनोद पांडे है, साथी लगे रहे आपसे अच्छी ऊर्जा मिलती है ।
विमल भाई और अभय भाई आप लोगों ने तो सारी कसर निकालकर मुझे कहीं का नहीं छोडा.
अपका जितना भी शुक्रिया अदा किया जाये कम है. इतनी तारीफ़ आंचल में नहीं समा रही है.धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद.
विमल जी अगर छटवीं तस्वीर में विनोद पांडे ही हैं तो कहिये मैं नाम का उल्लेख वहां भी कर दूं?
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