लोग किताबें पढ्कर बडी हड्बडी में अपने लिये विचारों का संचय कर लेते हैं और परस्पर विरोधी दलों में बंट जाते हैं.तेज़ी से बदलते मतों और जड खेमेबाज़ियों को ग़ौर से देखने की ज़रूरत है. दरअस्ल यह प्रक्रिया 'कमज़ोर' और 'अकेलेपन से त्रस्त' बुद्धिजीवी की स्नायविक जल्दबाज़ी को स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित करती है. वह अस्तित्व रक्षा के संघर्ष में जो भी हथियार सामने आ जाता है उसको पकड लेता है, बिना ये सोचे-समझे कि उसका प्रयोग करने की उसमें शक्ति है या नहीं.
2 comments:
इरफान साहब, आपने लाख टके की बात कही है.
(लेकिन मेरे जैसे खेमेबाजी के विरोधी तो हर खेमे से लताड़ पाते रहते हैं)
"वह अस्तित्व रक्षा के संघर्ष में जो भी हथियार सामने आ जाता है उसको पकड लेता है, बिना ये सोचे-समझे कि उसका प्रयोग करने की उसमें शक्ति है या नहीं. "
आप नहीं जानते कि आपने कमबख्त कितनी बड़ी बात कह डाली है.
गहन अन्तर्दृष्टि से उपजी आपकी यह टिप्पणी अपने में बहुत बड़ा सच समेटे है . आपसे पूरी तरह सहमत हूं .
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