दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, June 29, 2009

दानिश साहब से बातचीत 6

2 comments:

jagmohan said...

(1)
अनाथ बच्चों के लिए
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आवश्यक तो नहीं कि
मेरी-तुम्हारी मां भी एक होती
नालबद्ध होते हम
जुड़वा भाइयों की तरह...
आवश्यक तो नहीं कि...
हमने एक साथ
घुट्टी नहीं पी
इतना कम तो नहीं की...
जब-जब तुम्हारे एकांत में-
खड़ा था मैं-
तुम भी मेरे एकांत में खडे थे।
सुनो भाई...
जितने बहे तुम्हारे आंसू
जितनी-जितनी रातों में तुमने
ढूंढा मां को...
उतनी-उतनी बार
रोया मैं भी
और...रोये मेरे गर्भ में
असंख्य शिशु-
मगर...अब हम आंसुओं को दें देगें...
बादलों को-
ताकि! बरस वह सकें
बंजर धरती पर...।

(2)
उस पार
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इस पार
बस रहा है
सेटेलाइट शहर
तेजी के साथ
जिसमें-
रिश्ते-नाते-संस्कार
भाषा-बोली-गीत-संगीत
रीति-रिवाज
और भी बहुत कुछ
बदल रहा है
तेजी के साथ...।
और
उस पार
नदी के किनारे
पहाड़ की तलहटी में-
बसे गांव-घर
खेत-खलिहान
पेड़-पौधे-बूढ़ी नम् आंखें
हो रहे हैं तब्दील खंडहर में
तेजी के साथ...।
- जगमोहन 'आज़ाद'

इरफ़ान said...

Jagmohan apna phone number mujhe ramrotiaaloo@gmail.com par abhi bhejo.