टूटी हुई बिखरी हुई
क्योंकि वो बिखरकर भी बिखरता ही नहीं
दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।
Monday, December 22, 2008
गंदे गाने: एक श्रृंखला: उडाय ले मौज बबुनी ...
1 comment:
विजयशंकर चतुर्वेदी
said...
hamare yahan te avaziya bharraaee aavatahai!
December 25, 2008 at 11:26 PM
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hamare yahan te avaziya bharraaee aavatahai!
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