दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Wednesday, August 13, 2008

क्यों खींचता है ये भजन बार-बार मुझे!


कोई साल भर पहले अपनी पसंद के संगीत की शृंखला में मैंने यह भजन आपसे शेयर किया था. पता नहीं क्यों आज फिर दिल कर रहा है कि इसे आपसे साझा करूँ. सुनिये-


8 comments:

Neeraj Rohilla said...

वाह, पहली बार सुना |
बहुत आभार इसे पेश करने का,

सुनीता शानू said...

पहले कभी नही सुना यह भजन,मगर अच्छा लगा श्री कृष्ण के लिये यह भजन...

दिनेशराय द्विवेदी said...

इरफान भाई, मैं ने भी पहली बार ही सुना इसे। लेकिन दुनियाँ का सब से मधुर संगीत प्रार्थनाओँ में ही क्यों ही मिलता है? क्या इस लिए कि यह सारी पीड़ित मानवता के आर्त स्वरों से उत्पन्न होता है?

Nitish Raj said...

इरफान जी, अच्छा ब्लाग है और लाइब्रेरी भी अच्छी है आपकी।

मीनाक्षी said...

आपकी पसन्द लाजवाब है...सुब्बालक्ष्मीजी को हम सालों से सुनते आ रहे हैं और यह भजन तो दिल में गहरे तक उतरा हुआ है...सुनवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया..

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

भारत कोकिला सुश्री सुब्बालक्ष्मी जी की सात्विकता बेजोड है !
- लावण्या

विनय (Viney) said...

बहुत खूबसूरत!
नास्तिकों को आस्तिक बना दे यह भजन! या शायद भगवान् इन शब्दों-सुरों-साजों में ही बसता है!

मुनीश ( munish ) said...

main samajhta tha ke tum nastik ho lekin aisa sangeet jo sune sunaye vo asal astik hua magar T series company ye na manegi.