पेशे से चिकित्सक डॉ. संजय चतुर्वेदी हिंदी कविता में आए और जल्द ही चले गये. संक्षिप्त उपस्थिति में ही उन्होंने अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय दिया. क्यों अब वे कविता की दुनिया में सक्रिय नहीं हैं, बहुत दिनों से उनसे मुलाक़ात नहीं हुई कि जान सकूँ. बहरहाल उनकी एक कविता पढिये-
सभी लोग बराबर हैं
सभी लोग स्वतंत्र हैं
सभी लोग हैं न्याय के हक़दार
सभी लोग इस धरती के हिस्सेदार हैं
बाक़ी लोग अपने घर जाएँ
सभी लोगों को आज़ादी है
दिन में, रात में आगे बढने की
ऐश में रहने की
तैश में आने की
सभी लोग रहते हैं सभी जगह
सभी लोग, सभी लोगों की मदद करते हैं
सभी लोगों को मिलता है सभी कुछ
सभी लोग अपने-अपने घरों में सुखी हैं
बाक़ी लोग दुखी हैं तो क्या सभी लोग मर जाएँ
ये देश सभी लोगों के लिये है
ये दुनिया सभी लोगों के लिये है
हम क्या करें अगर बाक़ी लोग हैं सभी लोगों से ज़्यादा
बाक़ी लोग अपने घर जाएँ.
संजय चतुर्वेदी
प्रकाशवर्ष संग्रह की पहली कविता
10 comments:
Ek alag see kawita padhane ka abhar.
भई बहुत अच्छे!
ये देश सभी लोगों के लिये है
ये दुनिया सभी लोगों के लिये है
हम क्या करें अगर बाक़ी लोग हैं सभी लोगों से ज़्यादा
बाक़ी लोग अपने घर जाएँ.
कितना बडा सत्य है !! हम भी घर जा रहे है
संजय चतुर्वेदी मेरे प्रिय कवियों में एक रहे हैं . इधर बहुत दिनों से उन्हें नहीं पढ सका हूं . उनके कुछ पद पढे थे राजकिशोर द्वारा सम्पादित 'दूसरा शनिवार' में वे भी बहुत पसंद आए थे . एक का शीर्षक तो अभी भी दिल-दिमाग में खुबा हुआ है : 'पुर में कल्चरचोर पधारा ....'
इरफान जी एक रोचक और अलग कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद,
हम क्या करें अगर बाक़ी लोग हैं सभी लोगों से ज़्यादा
बाक़ी लोग अपने घर जाएँ..
अच्छी लगी
बहुत बढ़िया !
अरे वाह इरफ़ान भाई, ये कविता संजय जी की पुस्तक की समीक्षा, जो आजतक में आई थी, में पढ़ी थी। नब्बे के दशक में कभी और डायरी में नोट कर ली थी। आज पूरी पढ़कर अच्छा लगा।
बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
आम आदमी का...हाशिये में
घुट-घुट मर खप रहे जीवन का
ऐसी सादगी से भरा बयान संजय जी की
कलम का कमाल ही तो है ! शुक्रिया.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बाकी लोगों के पास तो जाने के लिए घर भी नहीं। बहुत अच्छी कविता पढ़ने को मिली।
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