विष्णु खरे हिंदी कविता के जाने-माने नाम तो हैं ही, कुछ और चीज़ों में भी उनकी गहरी दिलचस्पी है. कोई दो साल पहले मैंने उनसे हिंदी फ़िल्मी गानों पर बात करने के लिये 15-20 मिनट का समय चाहा था. बात चली तो हम कोई दो घंटे इस विषय पर बतियाते रहे. तब मैं ब्लॉग नहीं लिखता था और बाद में उस बातचीत से समृद्ध मेरी यह टिप्पणी अविनाशजी ने अपने ब्लॉग पर जारी भी की थी.
बहरहाल आज उस संदर्भ की याद सिर्फ़ इसलिये ताज़ा हो आई कि यह गीत(नीचे सुनें) सुन रहा था तो विष्णु जी के शब्द कानों में गूँज उठे- "अ हा हा...चमन में रहके वीराना मेरा दिल होता जाता है...गर्मियों की किसी दोपहर में कभी इस गीत को सुनिये तो लगेगा कि एक वीरानी सी छाने लगी है"
शमशाद बेगम आज भी हमारे बीच हैं और अच्छा लगता है ये सोचकर कि आज रात जिस चाँद को उन्होंने नज़र उठाकर देखा होगा उसे हमने भी देखा.
चमन में रहके वीराना मेरा दिल होता जाता है...
8 comments:
Irfanbhai
Aaj bhi ye geet taro taza lagta hai.
Shukriya prastutike liye.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
शुक्रिया ,इरफ़ान भाई।विष्णु जी से बातचीत के बाद वाले लेख का इन्तेज़ार है ।
मधुर गीत और भरपूर जानकारी । वाह
वाह ...क्या बात है !
शमशाद बेगम के हुन्नर और गायकीको लाखोँ सलाम !
- लावण्या
'great, puranee yadoon ko taja krna accha lga"
Regards
ajkal ke halaat pe kuchh sunvayen bhai jo josheela sangeet ho.
इरफ़ान भाई, गीत तो अच्छा है। बरसात की दोपहर में भी इसका असर मारक है।
इसका कुछ अता-पता भी दो भाई। फ़िल्मी है क्या?
उम्मीद है, यह गीत 'टूटी बिखरी' पर लग जाने से पापा विष्णु नाराज़ नहीं हुए होंगे!
उत्तम!
सदियों पुरानी तमन्ना पूरी करा दी बाबा! जियो!
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