Sunday, July 8, 2007
एक ख़्वाब मेरे नज़दीक आता जा रहा है
रात का सन्नाटा
रात का सन्नाटा
झील की तारीकी में चप्पू चला रहा है
आहिस्ता-आहिस्ता
एक ख़्वाब मेरे नज़दीक आता जा रहा है
खंडहर हो गये महल की परछाइयां पीछे छूट गयी हैं
दिये की लौ में आफताब सिमट आया है
और मुस्तक़बिल किसी नवेली की तरह रूबरू हो उठा है
मैं तुम्हीं से मुख़ातिब हूं मेरे हमसफ़र!
चांदनी रात में पडे ओलों की तरह
मैंने ख़ुद को किसी करिश्मे के हाथों सौंप दिया है
कल सुबह मैं सूरज की किरन के साथ
कंवलों के ख़ूबसूरत तहख़ानों को खोल दूंगा
मेरा तवील सफ़र एक मंज़िल की तलाश था
रात को बाआवाज़ बनाती वह मंज़िल
ख़ुद मेरे पास आ गयी है
कस्तूरी की महक मेरे चारों तरफ़ है
उफ़क़ मेरे सामने हाथ बांधे खडा है
कल मैं समुंदर को नया नाम दूंगा
आसमान को नये चांद-सूरज से सजाऊंगा
और एक लम्हा मेरी आंखों के इशारे पर
एक नयी दुनिया की तामीर करेगा
मैं तुम्हीं से मुख़ातिब हूं, मेरे हमसफ़र!
मेरी सोच और ख़्वाबों के हिस्सेदार!!
मेरी दुनिया का नया सफ़र तुम्हीं से शुरू होता है...आमीन!
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अब हमारी क्या बिसात कि हम भी कुछ लिख सकें...सारे नुक़्ते और सारे एहसास यारों की क़लम से चुकते हुए. अब इसी लाइन को लिखने में देखिये मुझे अब तक सीखी ज़बान की कैसे कसरतें करनी पडीं और लाइन ग़लत ही कंस्ट्रक्ट हुई. लेकिन तब हम उतना नहीं डरते थे, जितना अब डरते हैं. एक बार जब किशोर कुमार के पिता ने फ़िल्म में उनसे कहा कि 'बेटा किशोर! अब तुम जवान हो गये हो." तो जवाब में किशोर कुमार ने कहा था कि "और पिताजी!जवानी दिवानी होती है" तो इसी दिवानी जवानी के जोश में हमने अपनी प्रेमिका को निम्नलिखित कविता भेज दी. आजकल ब्लॉग की मंडी में ऐसी कविताओं की पैकेजिंग की भारी मांग को देखते हुए यहां ठेलता हूं--
(गुलज़ार प्रेमी जल उठते हैं ये पढकर क्योंकि अब तक बादलों को काटकर सीने का कौशल उन्हीं के पास था)
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1 comment:
बेहतरीन कविता…पढ़कर मन आनंदित हो गया…।
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