दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, March 27, 2015

उर्दू का जश्न वाया बोलने में परेशानी है ?



कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले। 
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ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, 
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है। 
ये दो शेर थे जिन्हें उन सभी लोगों से पढ़ने को कहा जो वॉयस ओवर करना चाहते थे या रेडियो में जाना चाहते थे. ऐसा नहीं था कि ये शेर उनके लिए पहली बार नज़र से गुज़रे थे बल्कि स्कूलों में पढ़ने की ट्रेनिंग न होने, घर के भीतर बोली जाने वाली ज़बान के भ्रष्ट होने, आम लापरवाही और भाषा के प्रति असावधानी से ये (नीचे सुनिए) नतीजे आये. आप चाहें तो इस पंक्ति को ट्राई करवा कर देखिये:-
"फ़िज़ूल बातों से फ़ारिग़ हुए तो फ़ानूस से शाख़ों पर लटकते फल-फूलों पर निगाह फेरी, वहां से फ़रार होने में सफल हो सकता था, फिर सोचा इससे फ़ायदा क्या होगा ?" 
या इसे पढ़वा कर देखिये
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जश्न-ए-रेख़्ता में लहालोट लोगों की भीड़ इसलिए मुझे तमाशाई ज़्यादा और जिज्ञासु कम लगती है. अगर उर्दू के बिना आपका काम चल सकता है तो कम अज़ कम हिंदी तो सही बोल लीजिये।
*** Listen here

1 comment:

Neeraj Rohilla said...

इरफ़ान जी, याहू की मदद से हिन्दी लिख रहे हैं तो हिज्जे और नुक्ते की गलतियों के लिये पहले से मुआफी की अर्ज़ी लगा देते हैं |
जश्न-ए-रेख़्ता में लहालोट लोगों की भीड़ इसलिए मुझे तमाशाई ज़्यादा और जिज्ञासु कम लगती है. अगर उर्दू के बिना आपका काम चल सकता है तो काम अज़ कम हिंदी तो सही बोल लीजिये।
आपकी इस बात पर मुझे कुछ ऐतराज है | मैने खुद ऐसे मित्रों (मुझे भी इसी भीड़ में माने) को देखा है जो इस भीड़ का ही हिस्सा हैं | मेरे एक मित्र ने हिज्र-विसाल वाले हिज्र की जो व्याख्या समझ रखी थी उसमे उन्हे तेज ताली की आवाज आती थी | लेकिन वोही महाशय अब काफी तरक्की कर चुके हैं |
एक और गुजारिश है, अगर अंत में आप लिखे दो अशआर और तीसरे वाक्य का सही उक्‍चारण भी दे सकते तो हम जैसे नौसिखियों को वाकई में मदद मिलती | रिक्वेस्ट पर ध्यान दीजियेगा,
नीरज रोहिल्ला