दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, September 4, 2015

गोली बाबू और दादू


वीरेन दा की ताज़ा कविता उनके ही स्वर में. 04.09.2015, शाम 7.30 , गांधी शान्ति प्रतिष्ठान, नयी दिल्ली

Sunday, May 10, 2015

तीन रोज़ इश्क़


कल Puja Upadhyay ने अपनी पहली और ताज़ा किताब 'तीन रोज़ इश्क़' से दो टुकड़े Indian Women Press Club में पढ़े.

Saturday, March 28, 2015

एक जीवन के लिये: मंगलेश डबराल

दूसरा हाथ: मंगलेश डबराल

बारिश: मंगलेश डबराल

अकेला आदमी: मंगलेश डबराल

दादा की तस्वीर: मंगलेश डबराल

पिता की तस्वीर: मंगलेश डबराल

मां की तस्वीर: मंगलेश डबराल

प्रेम करती स्त्री: मंगलेश डबराल

Friday, March 27, 2015

उर्दू का जश्न वाया बोलने में परेशानी है ?



कहाँ मैख़ाने का दरवाज़ा ग़ालिब और कहाँ वाइज़,
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले। 
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ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम अमीर, 
सारे जहां का दर्द हमारे जिगर में है। 
ये दो शेर थे जिन्हें उन सभी लोगों से पढ़ने को कहा जो वॉयस ओवर करना चाहते थे या रेडियो में जाना चाहते थे. ऐसा नहीं था कि ये शेर उनके लिए पहली बार नज़र से गुज़रे थे बल्कि स्कूलों में पढ़ने की ट्रेनिंग न होने, घर के भीतर बोली जाने वाली ज़बान के भ्रष्ट होने, आम लापरवाही और भाषा के प्रति असावधानी से ये (नीचे सुनिए) नतीजे आये. आप चाहें तो इस पंक्ति को ट्राई करवा कर देखिये:-
"फ़िज़ूल बातों से फ़ारिग़ हुए तो फ़ानूस से शाख़ों पर लटकते फल-फूलों पर निगाह फेरी, वहां से फ़रार होने में सफल हो सकता था, फिर सोचा इससे फ़ायदा क्या होगा ?" 
या इसे पढ़वा कर देखिये
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जश्न-ए-रेख़्ता में लहालोट लोगों की भीड़ इसलिए मुझे तमाशाई ज़्यादा और जिज्ञासु कम लगती है. अगर उर्दू के बिना आपका काम चल सकता है तो कम अज़ कम हिंदी तो सही बोल लीजिये।
*** Listen here

Thursday, March 26, 2015

मांगे की तन्हाई … (borrowed loneliness) हिन्दी में भी है क्या ??


Photo courtesy: Ashok Gupta










 An urdu writer on short stories and modernity etc OR

मुहम्मद यूसुफ पापा-3


मुहम्मद यूसुफ पापा के साथ जिस मुलाक़ात का मैंने यहाँ ज़िक्र किया उसमें हमारे फ़िल्मकार साथी नितिन भी थे और हम इस इरादे से गए थे कि पापा की वीडियोग्राफी कर लेंगे और अगर चीज़ें फेवरेबल रहीं तो उन के बारे में कोई प्रोग्राम बनाने की सोचेंगे. नितिन ने बड़े मनोयोग से शूटिंग की और हम इस मुलाक़ात से खुश तो लौटे पर शायद उनकी स्मृति क्षीण होने से पहले पहुंचते तो उनकी बातें ठीक से दर्ज कर पाते। वो बार बार अपनी ही लिखी कुंडलियों में से एक कुंडली की लाइने बेतरतीब ढंग से दुहरा रहे थे. मतलब किसी भी वाक़ये का ज़िक्र करते हुए उसके आगे या पीछे या कभी बीच में या कहीं भी कह उठते- 'जब कुछ भी ना बन सको, अध्यापक बन जाव' और चुप हो जाते। फिर इधर उधर की बातें करते हुए बीच मे कहते- 'झूठे युग में कथा सुनाओ, तुम सच्चों की' … और ऐसा हमारी उस मुलाक़ात में उसी तरह हो रहा था जैसा देवेन्द्र सत्यार्थी के साथ इस मुलाक़ात में. बहरहाल उनकी तस्वीर का एक छोटा सा स्केच उनका यहां पेश है जो उनकी किताब 'पापा की कुंडलियाँ' से लिया गया है. और ये रही उनकी वह कुंडली जिसका ऊपर ज़िक्र है.
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जब कुछ भी ना बन सको, अध्यापक बन जाव। 
घाट-घाट पानी पियो, खरिया मिट्टी खाव।। 

खरिया मिट्टी खाव, नाक पोछो बच्चों की। 
झूठे युग में कथा सुनाओ, तुम सच्चों की।। 

कह 'पापा' कविराय, यही केवल कहते सब । 
गर्दन नीची करो, प्रिंसिपल कुछ बोले जब ।।
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'पापा की कुंडलियाँ' नाम की किताब में मुहम्मद यूसुफ पापा की 186 कुंडलियाँ हैं जो पांच अलग अलग भावों की श्रेणी में संजोई गयी हैं. किताब की शुरुआत में एक हम्द (ईश वंदना) है और एक नात (पैग़म्बर की प्रशंसा में) भी कुंडली की ही शक्ल में हैं. यहां पेश है वह नात :-

बासी तैबा देश के, तुझ पर कोटि सलाम। 
भेज रहा है प्रेम हित, तेरा पतित ग़ुलाम ।। 

तेरा पतित ग़ुलाम, धूल चरनों की मांगे। 
धन, दौलत, सुत, प्रान, जायँ बलि तेरे आगे ।। 

कह पापा कविराय, आँख दर्शन की प्यासी। 
करो दया की दृष्टि, बुलालो तैबा वासी ।।

Tuesday, March 24, 2015

अजय आर्ट्स: एक साइन बोर्ड पेंटर का संसार



Guftagoo with Ajay Painter-1 Guftagoo with Ajay Painter-2 Recorded in Delhi, 21.03.2015 Present occuation of Ajay: Driver Worked as a sign board painter for 8 years.

Saturday, March 21, 2015

मोहम्मद यूसुफ़ पापा-2

मेरे गीत चटपटे छोले हैं
मेरे गीत चटपटे छोले हैं

ये हरे खेत के चुने हुए
ये भड़भूजे के भुने हुए
हल्दी से रंगे ये पीले हैं
ये चितकबरे और धौले हैं

मेरे गीत चटपटे छोले हैं

मेरे गीतों में झनकार भी है
आदर्श भी है ललकार भी है
गुंजार भी है महकार भी है
कुछ रूप भी है आकार भी है
मेरे गीत सत्य ही बोले हैं

मेरे गीत चटपटे छोले हैं

मेरे गीतों में आसानी है
मेरे गीत भैंस की सानी हैं
शरबत हैं, मीठा पानी हैं
इनमें इस क़दर रवानी है
ये ठोस भी हैं और पोले हैं

मेरे गीत चटपटे छोले हैं

मेरे गीत दूध के धोए हैं
इनमें क़हक़हे समोए हैं
जो शब्द गीत में बोए हैं
मोती की तरह पिरोए हैं
ये सबके लिये हिंडोले हैं

मेरे गीत चटपटे छोले हैं

मेरे गीत में सुर है ताल भी है
आकाश भी है पाताल भी है
मंसूरी नैनीताल भी है
इकताल भी है झपताल भी है
ये कानों में रस घोले हैं

मेरे गीत चटपटे छोले हैं.

Friday, March 20, 2015

मुहम्मद यूसुफ़ पापा


मुहम्मद यूसुफ़ को उनके जीवन के आख़िरी बरसों तक मुहम्मद यूसुफ़ पापा के नाम से जाना गया. साल 2011 की आती सर्दियों में जब हम उनसे मिलने गये तो वो बातें दुहराने लगे थे लेकिन इससे क्या. उनसे मिलना एक ग़ैरमामूली इंसान से मिलना था. उर्दू, हिंदी और भोजपुरी में समान अधिकार से लिखने वाले मुहम्मद यूसुफ़ के नाम के साथ पापा जुड़ना उनके बाल लेखन की वजह से हुआ. उनके समकालीन बालक राम नागर आज भी उन्हें बड़े प्यार से याद करते हैं क्यों कि बरसों तक आकाशवाणी में बच्चों के प्रोग्राम करते-करते खुद बच्चा बन चुके बालक राम नागर ने मुहम्मद यूसुफ़ की रचनाओं में वह विलक्षणता देखी थी जो उन्हें बचकाने होकर बच्चों का लेखक बन जाने से रोकती थी. उर्दू में 'चिलमनामा', भोजपुरी में 'अपने हो गईलैं बेगाना', 'पापा के भोजपुरी लोकगीत' और 'पापा की कुंडलियां उनकी वो किताबें हैं जिन्हें मैं जानता हूं. उनकी मातृभाषा भोजपुरी ही थी. उप्र के बस्ती ज़िले में बसडीला गांव उनका पैत्रिक गांव था जो तहसील ख़लीलाबाद में पड़ता है. बस्ती से हाई स्कूल, गोरखपुर से इंटर्मीडियेट करने के बाद उन्होंने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से बीएससी और एमएससी किया. जब हमारी मुलाक़ात उनसे हुई तो वो जामिया नगर के अपने मामूली घर में रिटायरमेंट के बाद की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे. फीज़िक्स-अध्यापक के रूप में वो जामिया हायर सेकंडरी स्कूल से रिटायर हुए थे. आज नागर जी से उनका ज़िक्र छिड़ा तो पता चला कि वो अब नहीं रहे. देर से ही सही उन्हें श्रद्धांजलि.
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यहां उनकी वह कविता देता हूं जो मुझे नागर जी से हासिल हुई थी. ये कविता उन कई कविताओं में से एक है जो उन्होंने नागरजी के लिये उनके बच्चों के प्रोग्राम में पढी थी और जो मुझे बेहद पसंद है.
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चिड़ियों का फुदकना क्या देखा, हर वक़्त फुदकता रहता हूं. 
इंसान संवरने में फुदके 
अश्नान के करने में फुदके 
पानी के भरने में फुदके 
सीढ़ी से उतरने में फुदके 
वादे से मुकरने में फुदके 
चिड़ियों का फुदकना क्या देखा, हर वक़्त फुदकता रहता हूं. 
सोचूं तो ध्यान फुदकता है 
आतमसम्मान फुदकता है 
घर में मेहमान फुदकता है 
खेतों में धान फुदकता है 
खाऊं तो पान फुदकता है 
चिड़ियों का फुदकना क्या देखा, हर वक़्त फुदकता रहता हूं. 
पेड़ों की डाल फुदकती है 
घोड़े की नाल फुदकती है 
कंधे पर शाल फुदकती है 
चलने में चाल फुदकती है 
चावल में दाल फुदकती है 
चिड़ियों का फुदकना क्या देखा, हर वक़्त फुदकता रहता हूं.
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Thursday, March 5, 2015

शकील बदायूंनी के पुश्तैनी घर, बदायूं से सीधे

All pic. Prasanta Karmakar 18.02.2015 आवाज़ : मुशाहिद(मजीद)शादां (उम्र लगभग 55-56 साल), जो कि इस वक़्त बदायूं में शकील बदायूंनी के घर के वारिस हैं. इस पोस्ट में उसकी तस्वीर शामिल नहीं है. ये उस आदमी का बयान है जो अब सुन नहीं सकता. खम्भे से गिर जाने के बाद उस दुर्घटना ने सुनने की शक्ति छीन ली. शकील बदायूनी की तस्वीरों और पत्रों-दस्तावेज़ों को सहेज कर रखता है और कभी कभार टपक पड़ने वाले सैलानियों को यह बयान इसी अंदाज़ में पहुंचाने का आदी है. आप उसे बस सुन सकते हैं उससे कुछ पूछ्ना संभव नहीं है.