दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, February 16, 2010

सहस्राब्दी के आरम्भ में हिन्दी क्षेत्रों में बसे साहित्यकार: खुद अपने स्वर में





Duration: Approx 45 Min

3 comments:

शरद कोकास said...

इरफान भाई , यह प्रयोग तो बहुत बढिया है .. आवाज़ें पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ ..कुल मिलाकर यह अच्छा लग रहा है .. हाँ यह आवाज़ विष्णु खरे जी की है और यह ..मैनेजर पाण्डेय और ..यह भगवत रावत ... चलिये पूरा सुनकर लिखता हूँ ।
लेकिन सही है ..इलाहाबाद से उखड़कर जबलपुर आ बसे ज्ञानरंजन की कथा तो उनके मुँह से सुनी है ।
हम तो जनपद के कवि हैं जहाँ रहते हैं साहित्य वहीं ढूँढ लेते हैं । अब दिल्ली के मोहताज नहीं है कोई ?

मुनीश ( munish ) said...

blah...blah..blah.. !

sanjay joshi said...

Interesting. Is it gift of recent concluded Delhi World Book Fair? Would be more meaningful if u add list of interviewees also.
Sanjay Joshi