टूटी हुई बिखरी हुई
क्योंकि वो बिखरकर भी बिखरता ही नहीं
दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।
Friday, February 12, 2010
आरज़ू लखनवी को क्यूँ भूलें ?
सहगल
साहब को सलाम और आरज़ू लखनवी को भी। नौशाद साहब जिन आरज़ू को अल्लामा आरज़ू कहकर कान पकड़ते थे , उनके लिखे को न्यू थियेटर के बी एन सरकार पत्थर की लकीर समझते थे ।
सुनिए ये ग़ज़ल -
1 comment:
सागर नाहर
said...
अरे, खोजते हुए यहां आये तो यहां भी गज़ल नदारद है!
February 14, 2010 at 12:21 PM
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
अरे, खोजते हुए यहां आये तो यहां भी गज़ल नदारद है!
Post a Comment