दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, February 12, 2010

आरज़ू लखनवी को क्यूँ भूलें ?


सहगल साहब को सलाम और आरज़ू लखनवी को भी। नौशाद साहब जिन आरज़ू को अल्लामा आरज़ू कहकर कान पकड़ते थे , उनके लिखे को न्यू थियेटर के बी एन सरकार पत्थर की लकीर समझते थे ।
सुनिए ये ग़ज़ल -

1 comment:

सागर नाहर said...

अरे, खोजते हुए यहां आये तो यहां भी गज़ल नदारद है!