दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, May 19, 2008

हल

सत्रह जून के बलवे के बाद
लेखक संघ के सचिव ने
स्तालिन मार्ग पर पर्चे बंटवाए
जिनमें कहा गया था कि
जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है
और अब दुगने प्रयत्नों से ही
उसे पा सकती है. ऐसी हालत में
क्या सरकार के लिये ज़्यादा आसान नहीं होगा
कि वह इस जनता को भंग कर दे
और दूसरी चुन ले?
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बर्तोल्त ब्रेख़्त

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इरफान भाई, बहुत बहुत धन्यवाद। यह कविता भारी है अनेक काव्य संकलनों और खंड काव्यों पर।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

दरअसल दिल्ली वाले स्तालिन मार्ग की बात कर रहे थे ब्रेख्त.