सत्रह जून के बलवे के बाद
लेखक संघ के सचिव ने
स्तालिन मार्ग पर पर्चे बंटवाए
जिनमें कहा गया था कि
जनता ने सरकार का विश्वास खो दिया है
और अब दुगने प्रयत्नों से ही
उसे पा सकती है. ऐसी हालत में
क्या सरकार के लिये ज़्यादा आसान नहीं होगा
कि वह इस जनता को भंग कर दे
और दूसरी चुन ले?
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बर्तोल्त ब्रेख़्त
2 comments:
इरफान भाई, बहुत बहुत धन्यवाद। यह कविता भारी है अनेक काव्य संकलनों और खंड काव्यों पर।
दरअसल दिल्ली वाले स्तालिन मार्ग की बात कर रहे थे ब्रेख्त.
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