Sunday, March 30, 2008
गाने और गाने में फ़र्क़ होता है!
ये बात यूनिवर्सिटी के उन दिनों की है जब हम समाज और व्यवस्था के ख़िलाफ़ लोगों के मन में मौजूद ग़ुस्से को आवाज़ देते थे. उस आवाज़ में यूनिवर्सिटी रोड के समोसों और बासी तहरी का जोश तो होता था लेकिन कभी-कभी हम अपनी ही काविशों से बहुत आश्वस्त नहीं होते थे और सोचते थे कि हम एक ट्रेंडी रॉक ग्रुप जैसे हों तो वो लोग भी हमारी बात सुनेंगे जिनके लिये हम अक्सर एलियन और पराए लगते हैं.ये बीच-बीच में ऐसे खाते-पीते घरों के लडके भी हमारे ग्रुप में आ जाते थे जिन्हें ट्रेंडी जेश्चर्स लेने में कोई प्रयास नहीं करता पडता था और हमें लगता था कि जब हम स्टेज पर खडे होंगे तो बडे फ़ैशनेबल तो लगेंगें ही साथ में हमारा ऑडियेंस ग्रुप भी बढ जायेगा. बात कोई तेइस साल पुरानी है. ऐसे ही एक ऐक्टर-गिटारिस्ट के आने से कुछ धुनों में बदलाव भी आया. यहाँ मौजूद उस गिटार प्लेयर लडके का स्केच देखिये जो अब हासिल और चरस जैसी फ़िल्मों का निर्देशक है और कुशल एक्टर भी. 18 जुलाई 1986 को यह स्केच अज़दक ने बनाया था. बहरहाल अच्छा ही हुआ कि हम वैसे ट्रेंडी-अपमार्केट ग्रुप बनने के अपने ख़्वाब को पूरा नहीं कर सके.
आप देख रहे हैं कि उसी ग्रुप के अज़दक आज गा रहे हैं- देश सही जा रहा है.
और अब बात कोई दस साल पहले की. गोरख पांडे के एक गाने को दिल्ली के एक इंडी पॉप ग्रुप इंडियन ओशन ने गाया. मेरी इच्छा हुई कि ज़रा जानूँ तो सही मामला क्या है. मैं अपने दोस्त मेजर संजय के साथ उनसे जून 1999 को उनके स्टूडियो में जाकर मिला. उस मुलाक़ात और उनके "हिलेले" नंबर के बारे में मैंने "हंस" में लिखा भी(पृष्ठ 60, सितंबर 1999).
उस टिप्पणी का एक अंश पेश करता हूँ-
"...इंडियन ओशन के युवा गायक अमित किलम ने बातों ही बातों में बताया कि हमारा नया नंबर आ रहा है- हिलेले. जब उनसे पूछा गया कि इसमें क्या है तो उन्होंने बताया कि हम कहना चाहते हैं कि बदलती दुनिया और आर्थिक उदारीकरण के दौर में भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र बनकर उभरा है और हम दुनिया को दिखा देना चाहते हैं कि हम कमज़ोर राष्ट्र नहीं हैं and we are so strong in the world कि सब कुछ हिलाकर रख देंगे.(देश सही जा रहा है?)
...इंडियन ओशन के कम्पोज़र राहुल इस गीत के बारे में कहते हैं कि this is a song written by guy called Gorakh Pandey, the song originally in Bundelkhandi and we have taken few lines from this...यह गीत आंदोलनों में गाया जाता था and was very popular during our freedom movement इसमें बहुत मज़ा है, इसमें सब कुछ हिलता है, झोपडी हिलती है, मकान हिलता है, पेड हिलते हैं और मेरा मतलब है सब कुछ हिलता है."
आपने पहले कई बार सुना होगा ये गीत लेकिन आज सुनिये पहले इसका ओपनिंग म्यूज़िक फिर गीत "हिल्लेले"-
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आपको नहीं लगता कि सिर्फ़ इतिहासच्युत लोग ही इसे पसंद करते होंगे?
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8 comments:
great composition!thanks for sharing
आपके पास अनुभवों का खज़ाना है जिनका चुम्बकीय आकर्षण पाठकों को अपनी ओर खींचता है.
अज़दक जी की इस कलाकारी को तो हम उनके ब्लॉग silly suburb में भी देख चुके हैं. स्कैच बढ़िया है. यह गीत हमारे लिए नया है लेकिन पंकज जी की आवाज़ में सुने गीतों की धुनों ने अलग ही छाप छोड़ी थी.
एक बात ये कि आपने खरी खरी लिखी है दूसरे एक बात और जानना चाहता हूँ कि ये इंडियन ओशन वाले जब गाते हैं तो उसके शब्द हम साफ़ साफ़ क्यौं नहीं सुन पाते?इसके अलावा भी बहुत से इनके गाने संगीत में खो जाते हैं...समझ में ही नही आते
लाल एक रंग हैं या लाल एक रंग भी है जैसी बात हुई - इत्तेफाक़ ये है कि मैंने गोरख पांडे जी की "समय का पहिया" उसी दिन ली थी जिस दिन आप से पहली (अभी तक की आख़री भी) मुलाक़ात हुई रही - जनता के पल्टनि जब अभी पढी तो यही - कन्दीसा वाला गाना याद आया - ८ साल पहले सुना रहा जब किसलय के पहले स्कूल में बच्चों को इसपर नचाया गया था - इंडियन ओशन के गायक का बयान अचरज है - सुमन के अलावा क्या अर्पण हों ऐसे कहने पर - इलाहाबाद के खाने के ठिकानों में - वैसे उस समय सिविल लाइन्स में एक खाने की गाडी खड़ी होती थी सस्ती जेबों के लिए - और ८३ - ८४ में यू. पी. एस.सी. के आस पास के ढाबे हम लोगों ने भी तलाशे रहे - लेकिन हरी (जीरो रोड?) की पालक पकौड़ियों का जवाब आज तक नहीं मिला - और सुलाकी के लड्डू? -rgds
मेरा टेस्ट आपके टेस्ट से पुरा मिलता है ,अच्छा लगा सुनकर !!! हिल्लेले झकझोर " धन्यवाद
भाई वाह मजा आ गया
arrey londe ka naam to likh dete---Tigmanshoo Dhoolia!
isee albem me ek gaanaa hai, jise cover par kaha hai i ye aramaik/hibroo mei hai. Meine apane ek Israyali dost ko sunaayaa to in dono bhashao me koi matlab nahee nikalta.
filhaal kuch gaane karNpriy hai, aur kuchh compositions bhee achche hai.
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