Tuesday, March 4, 2008
आओ गाली-गाली न खेलें क्योंकि दस हज़ार लोगों की हवसी भीड से अच्छा है कि हमें एक ही भला मानुस पढे!
इधर तीन दिनों से गालियों का बाज़ार गर्म है.गर्म की बात आई तो "हॉट" एक ऐसा जादुई शब्द है जिसके बारे में इंटरनेट की वाइल्ड सर्च में जो बडे ही दिलचस्प आँकडे और तथ्य हैं उन्हें यशवंत सिंह ने गोरखपुर यूनिवर्सिटी के चुनावों के दौरान बताकर सबको चकित कर दिया था.सवाल ये है कि आज जबकि यशवंत से मेरी मुलाक़ात हुए भी बीस साल का समय गुज़र चुका है, और वे वहाँ आजकल क्या करते हैं यह भी ख़बर नहीं तो मुझे यह बात क्यों याद आ रही है? याद आ रही है इसलिये भी कि कल ब्लॉगबुद्धि वाले नौजवान विकास ने एक बार फिर वही सच्चाई उजागर की. उन्होंने लिखा है "...इसमें कोई दो मत नहीं है कि अब भी 80% इंटरनेट यूज़र्स पोर्न के लिये इंटरनेट पर आते हैं और सबसे ज़्यादा सर्च भी इसी शब्द को लेकर होते हैं."
इस पोस्ट के शीर्षक का बाद वाला हिस्सा भी इन्हीं विकास की बात के अगले हिस्से से लिया गया है.
इधर थोडे समय से हिंदी ब्लॉगर बडे मनोयोग और अपनी मेधा की ताक़त से इस काम में लगे हैं कि ताकाझाँकी में लोगों को कुछ ऐसा भी मिले जिससे उनके जीवन में कुछ रोशनी आए. यहाँ मैं ऐसी ही एक माला पिरोने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि आपको मौजूदा ब्लॉगिंग के कुछ नायाब मोती दिखाए जा सकें.
यहाँ सुनिये मंटो की दो कहानियाँ बू और नंगी आवाज़ें. यहाँ प्रमोद सिंह के अज़दक में पढिये किताबों का शोकगीत. दिलीप मंडल क्या कहते हैं रिजेक्ट माल में यह तो क़ाबिले ग़ौर है ही, अनामदास कम झटके नहीं देते. हाशिये पर रेयाज़ुलहक़ एक ऐसा अभियान चलाते हैंकि एक बार आप वहाँ गये तो एक तरह का एडिक्शन हो जाएगा. अशोक पांडे ने ऐसा कबाड इकट्ठा किया है जो लपूझन्नत्व की सभी सीमाएँ पार कर जाता है. समकालीन जनमत अपनी निरंतर गंभीरता से आपको बाँधे रखता है. मोहल्ला तो ऐसी, ऐसी और ऐसी चीज़ों से आपको रूबरू कराता है कि क्या कहने! स्वप्नदर्शी ने जब इस पोस्ट को जारी किया तो एक नई बात पैदा की. आशीष महर्षि का क्या कुसूर जो उनका लिखा आप नहीं पढते? पहलू में चंद्रभूषण ने क्या कुत्तों की कम ख़बर ली? क़स्बे से होते हुए शहर की नई सडक पर रवीश के नये उपन्यास की शुरुआत आप स्वागत योग्य नहीं मानते? निर्मल आनंद में लीन अभय जब अपने मन की गाँठेंखोलते हैं तो क्या आप भी कुछ वैसा-वैसा नहीं सोचते? पारुल से आपको क्या कहना है? ज्ञानदत्त पाण्डेय के मन की हलचल को जानते हुए आप जब अजित वडनेरकर की शब्दों की दुनिया में पहुँचते हैं तो कैसे लौटते हैं नहीं मालूम. प्रत्यक्षा ने पिता का स्मरण किया तो सबका मन हुआ कि अपने पिता या आत्मीयजन पर ऐसा ही कुछ शब्दचित्र हो.यूनुस और विमल अपनी रेडियोवाणी और ठुमरी में जो गाने सुनवा रहे हैं उन्हें सुनकर उनकी सोना पर हमारी बिस्वास बढती जाती है. बंबई से बेदख़ल होकर इंदौर तक भी जो डायरी नए नए अनुभव दर्ज करती है उसे पढें या सस्ते शेर, समझ में नहीं आता.संदीप यहाँ कुछ ध्यानाकर्षित कर रहे हैं और प्रियंकर भवानी भाई को याद कर रहे हैं.घुघूती बासूती की यादें यहाँ हैं.मीनाक्षी को अपने अहम् से दो-दो हाथ करते यहाँ पढें और गाँव से क्यो नहीं भागे विजयशंकर? डॉ.प्रवीन चोपडा की खट-खुट यहाँ देखी जा सकती है.
जारी...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
9 comments:
read Mohalla comments on Reservation issue.
Bhai ji ye Indian Armed forces mein reservation ke baare mein kya khayal hai? Vahan kab hogi ye laagu? hain ji??
i could have have raised this question there too, but i think more sensible folks visit this blog.
anyhow u've given us a wonderful opportunity to know about various wonderful blogs . my thanx!
इरफाऩ भाई, इस पहल की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। गागर में सागर भर दी आपने। अनूठा विचार था आपका । ये बहुत बड़ा ऐहसान किया है आपने हम सब पर, जो इस क्षेत्र में हैं फिर भी बीच बीच में राह भटकते से लगते हैं। नए जुड़ते जा रहे लोगों के लिए तो यह फायदेमंद होगा ही। मेरा मानना है कि इसका लिंक स्थाई तौर पर आप अपने दोनों ब्लाग पर लगाएं ।
सही है.. भला मानुस के साथ बुरा मानुस भी पढ़ ले तो हर्ज नहीं है..
and what about Marathi Manoos?
Just check it out for Marathi Manoos's present conflict here
http://ramrotiaaloo.blogspot.com/2008/03/blog-post_05.html
एक भले मानुस ने तो पढ़ ही लिया !
मराठी माणूउउउउउउउउउस । न कि मानुस:)
मुनीष भाई यहीं पहुंचना चाहते थे न !
इरफ़ानजी,आपने तो कमाल कर दिया है...इस नायाब सोच के लिये आपको सलाम और शुक्रिया..साथी आपने मेरा भी नाम जोड़ दिया है इसके लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ,अद्भुत पोस्ट के लिये फिर से शुक्रिया।
haan ji vahi ajit bhai ! thnx. 4 giving exact feel!
Post a Comment