Sunday, March 16, 2008
मैं ब्लॉग पढ़ने के पैसे लेता हूँ...सुनिये एक और भूतपूर्व रंगकर्मी का बयान
ये पोस्ट पाँच ब्लॉगरों के लिये तैयार की गई है. बाक़ी लोग अपने धैर्य का इम्तेहान न दें तो अच्छा. आजकल एक बडे टीवी चैनल में एसोशियेट ईपी की पोस्ट पर काम कर रहा ये भूतपूर्व रंगकर्मी मेरा और इन पाँच ब्लॉगरों का दोस्त है. मेरी और इसकी दोस्ती के हज़ार रंग हैं. कोई बाइस साल पुरानी ये तस्वीर कोई कहानी आप तक पहुँचा दे तो इसमें आपकी प्रखर दृष्टि का ही दोष माना जाएगा.
पंकज श्रीवास्तव इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में तब ही आया जब मैं भी आया था. ऐसी ही बेगानगी और खोज की मनोदशा हमें दोस्त बना गई...जो दोस्ती आज भी चली आती है. रायबरेली का रहने वाला हमारा ये दोस्त अभी सहारा समय की उस टीम के साथ नौकरी को लतिया कर बाहर आया जिसकी चर्चा आप अलग-अलग ब्लॉग-पोस्टों में पढ चुके हैं. यूनिवर्सिटी के प्रख्यात नाट्य दल दस्ता में नाटक करना, छात्र-आंदोलन की गतिविधियों में एक साथ की गई हिस्सेदारी से लेकर स्टडी सर्किलों में साथ-साथ आना-जाना और एक समय में एक ही छत शेयर करना...सब कुछ जैसे कल की ही बात है. आज मैंने पंकज की ज़िंदगी का लगभग आधा दिन चुराया, ख़ूब गप्पें लडाईं, मंडी हाउस में जाम छलकाए और जो अनुपस्थित थे उनकी प्रशंसाओं और निंदाओं के पुल बाँधे. पंकज ब्लॉग नहीं लिखता , उल्टे ठहाका लगाते हुए कहता है कि उसका यूएसपी यही है कि वह ब्लॉगर नहीं है और यह भी वह उसी का ब्लॉग पढेगा जो उसे पैसे देगा.
मेरा इरादा था कि पंकज के साथ उसके रिपोर्टिंग के दौरान जमा अनुभवों को आपके साथ साझा करूँ लेकिन बात में से बात निकली और तीन गीत भी निकले. तो पहले सुनिये पंकज श्रीवास्तव के गाए वो तीन गीत जिन्हें वो अपने सक्रिय दिनों में साथियों के साथ और सामने गाया करता था.पंकज एक कुशल वक्ता और लोकप्रिय छात्र-नेता भी रहा...बग़ल की तस्वीर में पंकज एक विरोध प्रदर्शन में घायल दिखाई दे रहा है. यह प्रदर्शन विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल के ख़िलाफ़ किया जा रहा था. बाक़ी बातें आप ख़ुद ही सुनिये सबसे नीचे-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
बंद हैं तो और भी खोजेंगे हम...
ज़िंदगी ने एक दिन कहा कि तुम लडो...
दिन हिरन बन चौकडी भरता चला...
********************************************************************************************************************************************************
एक भूतपूर्व रंगकर्मी से इरफ़ान की बातचीत-
पहला हिस्सा
आखिरी हिस्सा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
25 comments:
वाह इरफान भाई इसमें जो आपने गीत दिए हैं उन्हें सुन कर तबियत खुश हो गई, जिंदगी ने एक दिन कहा...तो मेरा पसंदीदा गीत भी है..
हालांकि हम इसे दूसरी धुन में गाते हैं, लेकिन यह धुन और आवाज भी अच्छी लगी
कभी-कभी सोचते हैं कि पुराने रंगकर्मी-सस्कृतिकर्मी अब नौकरीकर्मी ही बन कर क्यों रहे गए हैं...उसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं, यहां इसकी चर्चा की जगह नहीं है।
फिर भी पंकज के बारे में कुछ बातें और उनकी आवाज में गीत सुनाने के लिए शुक्रिया..
और हां, जिंदगी ने एक दिन कहा...तो शशिप्रकाश का गीत है,
लेकिन बंद हैं तो....किसका गीत है, जानकारी हो तो बताइएगा, हालांकि मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा लेकिन इस धुन पर एक जनवादी गीत और भी है
पूरी प्रस्तुति बढ़िया है। सभी गीत शानदार है अलबत्ता बातचीत में पार्श्वगीत बहुत लाऊड हो गया है जिससे इंटर्व्यू पल्ले ही नहीं पड़ा।
हो सके तो उसे दोबारा लोड करें। सुनना चाहेंगे सभी।
क्षमा करें । मुझसे ही मूर्खता हुई। एक गीत चलता रहा और इस बीच मोबाइल पर फोन आया। बाद में मैने साक्षात्कार सुनना शुरू कर दिया । दोनो की मिक्सिंग सुनी तो लगा कि बेकग्राऊंड में संगीत चल रहा है। माफी चाहता हू।
पंकज की आवाज़ में गूँज ऐसी है कि लगा बाजे के साथ गा रहे हैं - सही
गीत अच्छे लगे। पकंज जी सुलझे व्यक्ति लगे - सक्षात्कार पसन्द आया।
अद्भुत अनुभव रहा इस बातचीत और गीत को सुनना। ब्लाग इस मामले में अद्भुत माध्यम है कि बिछुड़े हुये दोस्तों को मिला रहा है। सुनवाने के लिये आभार! इसे दुबारी फ़िर सुनेंगे!
वाह इरफ़ान साहब. मान गए.
@ अनूप, ब्लॉग ने इन मित्रों को मिलाया ऐसा नहीं लगता ।
पंकज जी ,रोजी रोटी और अन्ध विश्वास परोसने वाले चैनलों के अलावा आप से ऐसी सुन्दर प्रस्तुतियाँ सुनते रहने की उम्मीद है।
पंकज के बारे में जानकर अच्छा लगा!
very meaningful, nostalgic and interesting.Mubarakbad.
Ab aur kya kya nikalne wala hai tumahare khazaane se iska intazaar rahega.Chirkut bloggers ko accha sabak.
बेहतरीन गीत सुनवाने के लिये धन्यवाद।
संदीपजी, बन्द है तो और भी खोजेंगे हम देवेन्द्र कुमार आर्य का लिखा है, इरफ़ान क्या मैं सही कह रहा हूँ? वैसे बरसों बाद पंकज को सुनना अच्छा लगा,इरफ़ान आप सचमुच बधाई के पात्र हैं...
@ संदीप - अगर आपने बातचीत सुन ली हो तो आप समझ गये होंगे कि बंद हैं...देवेंद्र कुमार आर्य का लिखा है. ज़िंदगी ने.. आपने ठीक कहा शशि प्रकाश का है...तीसरा गीत दिन हिरन बन...केदारनाथ अग्रवाल का है.
आप सभी मित्रों को धन्यवाद जो इस पोस्ट को सार्थक मान रहे हैं.
सुनकर, पढ़कर अच्छा लगा । यह भी लगा कि यह सब भी, या शायद यह सब ही व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हों । केवल पुस्तकें पढ़कर व एक भी कक्षा मिस न करके हमने ही क्या पा लिया ? आवाज व गीत दोनों ही बहुत अच्छे लगे ।
घुघूती बासूती
इरफान जी, में आपका ब्लोग सुन नही पाता, मन मार के रह जाता हूँ, मैने adobe flash player bhi download kar रखा है फिर भि नही सुन पाता कुछ करीऐ ना
इरफान भाई
आज आपकी गली की तरफ आ निकला और काफी देर घूमता विचरता रहा आपके जरिये पुरानी गतियों में. गीत सुने, बातें गुनी और चाहा, काश, हमें भी पूरी जिंदगी में एकाध ही ऐसा दोस्त नसीब हुआ होता.
आमीन
सूरज प्राकश
पंकज जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा. उनकी आवाज़ अभी भी कानों में गूँज रही है.
परिचय देने और उत्साह भरने वाले गीत सुनवाने के लिए धन्यवाद
मीनाक्षी धंवंतरि
पंकज भाई को मेरी याद और सलाम और इरफान भाई आपको भी !
पंकज भाई को मेरी याद और सलाम और इरफान भाई आपको भी !
सचमुच मजा आ गया.गीत सुनाने के लिए शुक्रिया..
khoob hai irfan bhai aapke sathi pankaj ka andaj - pese lai kar padunga. mai bIna pase liye unhai padna chahta hoon. likhiye or.
आज दुबारा सुना। पंकज जी को सुनना बहुत अच्छा लगा। गीत फिर-फिर सुनने का मन करता है। इरफ़ान जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।
वाह पंकज भाई !
RAVIKANT
lucknow se jab pankaj ji gaye... ek din pahale ki ratt print aur electronic ke 16 patrakar 3 am tak press club me unke geet sunte rahe. lucknow me unn patrakaron ko sanskar dete tthe pankaj ji jo abhi naye hain aur 'mahan' nahi hue hain. pankaj ji ke sarokaron ko salam ! Irfan bhi...... Dhanyawad....
Post a Comment