दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, April 6, 2009

सस्ता शेर से कुछ सदस्य हटाए जाएंगे ???

सस्ता शेर को शुरू करने के पीछे इरादा यही था कि इसे ओरल ट्रेडीशन की शोकेसिंग का अड्डा बनाया जाय। मैं ने इसे बनाते ही पहला इनवाईट ठुमरी वाले विमल भाई को भेजा और उन्हों ने फ़ौरन स्वीकार किया और मैं खुश हुआ क्योंकि मेरे ख़याल से वही इसके पहले और आख़िरी कन्ट्रीब्यूटर होने चाहिए थे। जिस रफ़्तार से इस ब्लॉग ने यारों को जाकर पकडा उसमें मुझे कोई नई बात नहीं दिखती । मुनीश ठीक ही कहते हैं कि आज यह ब्लॉग एक अनोखा ब्लॉग बन चुका है । मुनीश या शायद आप भी नहीं जानते होंगे कि बड़ी संख्या में टीपू सुलतान लोग भी इस ब्लॉग पर आने वाली नई पोस्टों के इंतेज़ार में रहते हैं और टीपने के अपने जन्म सिद्ध अधिकार का उपयोग करते हैं और इस या उस उपयोग में इन शेरों को लाते हैं। एक मोबाइल कंपनी का क्रियेटिव राइटर भी यहाँ से कंटेंट उठा कर एस एम एस बनाता है । हम सब उसकी और उस जैसे टीपुओं की खुशी में शामिल हैं क्योंकि सबको खुश रहने का हक़ जो है !
वैसे तो हम भी मौलिकता की चक्की नहीं पीस रहे हैं।
यहाँ मैं मुनीश के ललकारने पर एक ऐलान जारी करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ कि सस्ता शेर से वो सभी सदस्य अपनी सदस्यता ख़त्म करवा लें जो कुछ भी सक्रियता नही दिखा रहे हैं. आख़िर नाम लिखा लेने भर से तो धर्म पूरा नहीं होता!
मुनीश और रितेश जी को धन्यवाद भी पहुंचे.

4 comments:

Anil Kumar said...

इन शेरों को अपनी मांद में वापस घुसा दिया जाये! :)

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

धमकी से डर के ये कहते हैं कि 'घर' आयेंगे
घर में भी ग़र 'सस्ता' न पाया तो किधर जायेंगे?

रदीफ़ और काफ़िया तथा वजन-बहर की ऐसी की तैसी!

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ... बधाई एवं शुभकामनाएं।

Neeraj said...

इरफ़ान भाई ,
जगह जगह ढूंढ रहा था कि सस्ता शेर किसका ब्लॉग है | जब जाना तब तक भूल गया , आज ये पोस्ट पढके दुबारा याद आ गया |
अभी प्लीज़ , उसे दुबारा शुरू कीजिये न , और हम लोगों को एक्सेस दे दीजिये, स्पेशल ईमेल वालों को ही परमिशन क्यों रहे | हंसने पर किसी का एकाधिकार क्यों हो |