मार्च २००३ की एक रात १.३० बजे का वक़्त। हुसेन साहब दिल्ली के एक साउंड स्टूडियो में इतने तारो ताज़ा कि जैसे दिन का वक्त हो । वो लाइनें रिहर्स कर रहे थे टेक पर टेक दे रहे थे ...ये उस आडियो बुक के प्रोडक्शन के दौर की बात है जिसे बनते हुए देखने और सुनने के लिए उनकी बेताबी हैरान कर देने वाली थी। "सुनो एमएफ़ हुसेन कि कहानी" नाम उन्होंने ही रखा ...पहले वो रखना चाहते थे "सुनो सुनो एमएफ़ हुसेन की कहानी" फिर खुद ही बोले इसमे मुनादी वाला सेन्स आ रहा है। ये उनकी लिखी आत्मकथा "एमएफ़ हुसेन की कहानी अपनी जुबानी" की अविकल प्रस्तुति है। इसमें और क्या क्या है ये बातें यहाँ इसी ब्लॉग पर मैं आपसे साझा करता रहा हूँ जो कि थोड़ी कोशिश के बाद आपको यहाँ मिल ही जायेंगी।
फिलहाल बस ये है कि दो दिनों से मन कुछ उचाट सा है ...ये जैसे किसी अपने को खोने जैसा है।
इस ऑडियो बुक को बनाने में जो क्रिएटिव फ्रीडम उन्हों ने मुझे दी और जो कदम ब कदम साथ चलने का जज्बा उन्होंने दिखाया वो सिर्फ वही कर सकते थे । "दादा की अचकन" इस पेशकश के उन हिस्सों में से एक है जिसे सुनते हुए उनकी आँखों में आंसू हमने देखे।
आज सुबह फिर उनके साथ रेकॉर्डिंग sessions के कुछ hisse सुने...
Bana bana ke ye duniya mitayi jati hai,
Zaroor koii kami hai jo payi jati hai.
इस शेर के कई टेक वो बिना मेरे कहे ही देते रहे जैसे इस बात की भीतरी परतें खोलना चाहते हों।
आइये सुनाते हैं आपको हुसेन साहब की आवाज़ः
4 comments:
Irfanji, koi audio file dikhaai nahi de rahi hai.
MF was the first and finest painter of our time deeply rooted in Indian ethos and had urban sensibility. He will remain a great artist of all time.
Last time when we met, I wanted to ask you about recording and if one can buy those.
irfaan bhaai shadi ki salgirah bahut bahut mubark ho .akhtr khan akela kota rajsthan
Unke khayal se hi taajgi aati hai..kuchh naya kar guzar ne kshamata ka aagaz hota hai..woh hamesha hamare dinlo me raaz karenge...irfan saheb kya yah cd market me available hai..ya sirf radio fm ke liye hi hai..pls batayen..
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