हम रामबाबू तैलंग को शायद ही कभी जान पायेंगे। कोई बारह साल पहले हमारे दोस्त सत्या शिवरामन जब अपने वतन सागर गए तो उन्हें अपने यार मुन्ना शुक्ला के ज़रिये इन महाशय के बारे में पता चला। रामबाबू तैलंग तब कोई नब्बे साल के थे और अगर अभी जीवित हैं तो हम उनकी लम्बी उम्र की कामना करते हैं। आकाशवाणी लखनऊ में केन्द्र निदेशक रहे रामबाबू शास्त्रीय संगीत में निपुण हैं और इस क्षेत्र में उनकी दीक्षा पंडित डी वी पलुस्कर के अधीन हुई है। सत्या का कहना है की इस तरह के विलक्षण लोग अपनी व्यक्तित्वगत समस्याओं, असुरक्षा आदि के कारण अपनी इन नैसर्गिक शक्तियों का विकास नहीं कर पाते। शुरू से ही रामबाबू गुज़रे ज़माने के महान गायक कुंदनलाल सैगल के गाये गीतों को हूबहू गानेवालों में गिने जाते रहे हैं. न सिर्फ़ सैगल बल्कि बेगम अख्तर की भी नक़ल वो बखूबी उतार लेते हैं,अपनी ख़ुद की चीज़ें तो वो बेहतरीन गाते ही हैं.
पेश है सागर की एक महफ़िल में गाई रामबाबू की यह ग़ज़ल. यहाँ रामबाबू की एक और खासियत का ज़िक्र करना बुरा न होगा. सत्या बताते हैं की सैगल की कई ऐसी रचनाएं जो की अधूरी थीं, उन्हें रामबाबू ने पूरा लिखा और फिर उन्हें गाया,
6 comments:
चार दिन की जिंदगी हो फ़िर क्या करे कोई ?
कम से कम ब्लाग लिखे कोई !! मजा आया सुनकर लाजवाब !!खामोशी टुटी तो अच्छा लगा !!
बहुत खूब इरफान भाई, नायब चीज़ लाए है...अलबत्ता खरखराहट कुछ ज्यादा थी..
फिर शुरु किया ..बहुत अच्छा किया ..
बहुत खूब दद्दा.
यह मेरे वास्ते नई जानकारी है.
वैसे,,कहना तो यह भी है कि ब्लाग कोई बुरा ठिया तो शायद ना है .
चौं साब?
अचानक कुछ ढूंढते हुए इस पोस्ट पर नज़र पडी ......ये तो मेरे गुरु जी है जिनकी आवाज़ का एक भी गीत मेरे पास सुरक्षित नहीं है ....मैंने उनकी इस आवाज़ को इतना सुना है कि भूल नहीं सकती फिर भी confirm करना चाहूँगी कि क्या ये कानपुर के रहने वाले राम बाबू जी हैं .....
ये तो मेरे गुरु जी की आवाज़ है शायद 30 साल बाद सुन रहीं हूँ .........फिर भी बताइये प्लीज क्या ये कानपुर वाले राम बाबू जी हैं ?
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