मज़दूर : लेकिन अगर कोई मालिक नहीं होगा तो
मुझे काम कौन देगा?
समाजवादी : यह सवाल मुझसे अक्सर ही पूछा
जाता है; चलो इसका पता लगायें। काम के लिए तीन चीज़ों
की ज़रूरत पड़ती है एक वर्कशॉप, मशीनें, और
कच्चा माल।
मज़दूर : ठीक है।
समाजवादी : वर्कशॉप कौन बनाता है?
मज़दूर : मिस्त्री।
समाजवादी : मशीनें कौन बनाता है?
मज़दूर : इंजीनियर।
समाजवादी : कपास कौन उगाता है जिससे तुम
कपड़े बुनते हो, भेड़ों से ऊन कौन निकालता है जिसे तुम्हारी
पत्नी कातती है, खदानों से खनिज कौन निकालता है जिसे तुम्हारा
बेटा भट्टी में ढालता है?
मज़दूर : किसान, चरवाहे,
खदान मज़दूर – मेरे जैसे मज़दूर।
समाजवादी : इस तरह, तुम,
तुम्हारी पत्नी, और तुम्हारा बेटा केवल
इसीलिए काम कर सकते हैं क्योंकि तमाम अन्य मज़दूरों ने तुम्हें भवन, मशीन
और कच्चे माल की आपूर्ति कर रखी है।
मज़दूर : लेकिन बात यह है; मैं
कपास और करघे के बिना सूती कपड़ा नहीं बुन सकता।
समाजवादी : ठीक है, तो
तुम्हें काम देने वाला पूँजीपति अथवा मालिक नहीं है, बल्कि
मिस्त्री, इंजीनियर, किसान
है। क्या तुम्हें पता है कि तुम्हारे मालिक ने तुम्हारे काम के लिए आवश्यक उन सभी चीज़ों
को कैसे हासिल किया?
मज़दूर : उसने उन्हें ख़रीदा।
समाजवादी : उन्हें रुपये किसने दिये?
मज़दूर : मुझे क्या पता। उसके पिता ने उसके
लिए थोड़े पैसे छोड़े होंगे; आज वह करोड़पति है।
समाजवादी : क्या उसने करोड़ों रुपये अपनी
मशीनों पर काम करके और कपड़े की बुनाई करके कमाये
मज़दूर : ठीक ऐसे तो नहीं; हमसे
काम करवाकर उसने करोड़ो रुपये अर्जित किये।
समाजवादी : तो वह बिना कोई काम किये धनी
बन गया; क़िस्मत बनाने का यही एकमात्र तरीक़ा है।
जो काम करते हैं उन्हें मात्र उतना मिलता है जिससे वे जीवित रह सकें। लेकिन,
मुझे बताओ, अगर तुम और तुम्हारे सहकर्मी
मज़दूर काम नहीं करें, तो क्या तुम्हारे मालिक की मशीनों में जंग
नहीं लग जायेगा, और उसके कपास कीड़े-मकोड़े चट नहीं कर जायेंगे
मज़दूर : यदि हम काम नहीं करें तो वर्कशॉप
की सभी चीज़ें जर्जर और बरबाद हो जायेंगी।
समाजवादी : इस तरह, काम
करके तुम अपने श्रम के लिए आवश्यक मशीनों और कच्चे माल की रक्षा कर रहे हो।
मज़दूर : यह सच है; मैंने
इस बारे में कभी नहीं सोचा।
समाजवादी : क्या तुम्हारा मालिक अपने वर्कशॉप
में होने वाले काम की देखभाल करता है
मज़दूर : ज़्यादा नहीं; वह
हमारे कार्यस्थल पर हमें देखने के लिए रोज़ आता है, लेकिन
अपने हाथ गन्दे होने की डर से वह उन्हें अपनी जेबों में रखता है। कताई मिल में,
जहाँ मेरी पत्नी और बेटी काम करती हैं, मालिक
कभी नहीं आता, हालाँकि वहाँ चार मालिक हैं; ऐसी
ही स्थिति फ़ाउण्ड्री में भी है, जहाँ मेरा बेटा काम करता
है; मालिक वहाँ कभी नहीं देखे जाते न ही उन्हें
कोई जानता है; यहाँ तक कि वर्कशॉप की तीन चौथाई आबादी ने
उनकी परछाई तक नहीं देखी जब कि काम की मालिक कम्पनी का यह एक सीमित उत्तरदायित्व है।
मान लीजिये आप और मैं बचत करके पाँच सौ फ्रैंक इकट्ठा कर लेते हैं, हम
एक शेयर ख़रीद सकते हैं, और मालिकों में से एक
बन जाते हैं, चाहे कभी कार्यस्थल पर क़दम भी नहीं रखा
हो, अथवा वहाँ जाते भी नहीं हों।
समाजवादी : तब, शेयरधारक
मालिकों की इस जगह पर, और तुम्हारे एक मालिक की तुम्हारे वर्कशॉप
पर काम को निर्देशित और उसकी निगरानी कौन करता है, यह
देखते हुए कि वहाँ कभी मालिक नहीं आता, अथवा इतनी आज़ादी है इसका
कोई असर नहीं पड़ता?
मज़दूर : मैनेजर और फ़ोरमैन।
समाजवादी : लेकिन यदि मज़दूरों ने वर्कशॉप
बनायें, मशीनें बनायीं, और
कच्चे माल का उत्पादन किया; यदि मज़दूर ही मशीनों को
चलाते हैं, और मैनेजर तथा फ़ोरमैन काम को निर्देशित
करते हैं, तो फिर मालिक क्या करता है
मज़दूर : कुछ नहीं, बस
बैठे-ठाले मौज करता है।
समाजवादी : यदि यहाँ से चाँद तक रेल जाती,
हम मालिकों को वहाँ भेज सकते थे, बिना
वापसी के टिकट के, और तुम्हारी कपड़े की बुनाई, तुम्हारी
पत्नी का चरखा, और तुम्हारे बेटे का ढलाई का काम पहले की
तरह चलता रहेगा…
तुम्हें पता है कि पिछले साल तुम्हारे मालिक को कितना मुनाफ़ा हुआ
था
मज़दूर : हमने गणना की है कि उसे एक लाख फ्रैंक
मिला होगा।
समाजवादी : उसने पुरुषों, महिलाओं
और बच्चों को मिलाकर कुल कितने मज़दूरों को रोज़गार दे रखा है?
मज़दूर : एक सौ।
समाजवादी : उन्हें कितनी पगार मिलती है?
मज़दूर : औसतन, लगभग
एक हज़ार फ्रैंक, मैनेजरों और फ़ोरमैनों के वेतन को जोड़कर।
समाजवादी : इस प्रकार काम में लगे सौ कर्मचारी
कुल मिलाकर पगार के रूप में एक लाख फ्रैंक पाते हैं, जो
मात्र इतना है कि वे भूख से नहीं मरें, जबकि तुम्हारा मालिक बिना
कुछ किये एक लाख फ्रैंक अपनी जेब में रख लेता है। ये दो लाख फ्रैंक आते कहाँ से हैं?
मज़दूर : आसमान से तो नहीं; मैंने
कभी भी फ्रैंक की बारिश होते नहीं देखा।
समाजवादी : अपने काम में लगे वे मज़दूर ही
हैं जिन्होंने उन्हें पगार के रूप में मिले एक लाख फ्रैंक पैदा किया, और,
इसके अलावा, उस मालिक के एक लाख फ्रैंक
के मुनाफ़े को भी पैदा किया, जिसने नयी मशीनें ख़रीदने
के लिए उनके एक हिस्से को रोज़गार दे रखा है।
मज़दूर : इस बात से इनकार नहीं है।
समाजवादी : इस प्रकार मज़दूर ही वो रुपये
पैदा करते हैं जो मालिक उन्हें काम करने के लिए नयी मशीनें ख़रीदने में लगाता है;
उत्पादन को निर्देशित करने वाले मैनेजर और फ़ोरमैन, आपकी
तरह ही वैतनिक गुलाम होते हैं; तब, मालिक
कहाँ आता है वह किस काम के लिए अच्छा है?
मज़दूर : श्रम के शोषण के लिए।
समाजवादी : हम कह सकते हैं, श्रमिकों
को लूटने के लिए; यह स्पष्ट और ज़्यादा सटीक है।
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पॉल लफ़ार्ग (द सोशलिस्ट, सितम्बर 1903 में प्रकाशित)
अनुवाद : संजय श्रीवास्तव
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