दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, April 28, 2014

उफ़्फ़ कमाल का विनम्र आदमी...भाइयो और बहनोऽऽऽऽऽऽऽऽ


मोहम्मद रफ़ी को गाते हुए सुनना और फिर बोलते हुए सुनना... ये दोनों बिल्कुल भिन्न अनुभव हैं. अगर आपको पक्का यक़ीन न हो कि आप रफ़ी को ही बोलते हुए सुन रहे हैं तो आप थोड़ी देर बाद बोलने वाले से शायद ये कह ही दें कि भाई चुप हो जाओ. 1977 में बीबीसी के सुभाष वोहरा ने रफ़ी से बातचीत की थी. उफ़्फ़ कमाल का विनम्र आदमी...भाइयो और बहनोऽऽऽऽऽऽऽऽ

1 comment:

azdak said...

"सुहानी रात ढल चुकी" का मुखड़ा गाने से अलग गवैया इस कदर मगर घबराया हुआ क्‍यों है, बैडमिंटन खेलने तक की बात इस कदर लजाये-लजाये बता रहा है मानो ससुरालवालों के सवालों के घेरे में फंस गया है और किसी तरह निजात मिले, क्‍यों ?