Monday, January 4, 2010
मेरी गुरमा यात्रा
अभी तो कुछ वक्त लगेगा कि तस्वीरें आप तक पहुँचाऊ लेकिन ये बताने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं कि मैं पिछले हफ्ते गुर्मा मारकुंडी होकर दिल्ली वापस आ गया। खबर मिली थी कि जेपी सीमेंट वाले हमारी उस कालोनी को उजाड़ने वाले हैं और वहां पर नई आवासीय बस्ती बसाने वाले हैं , इसलिए इस कडाके की सर्दी में भी मय बीवी बच्चों के, पहले राबर्ट्सगंज और फिर गुरमा पहुंचा। बस इतना ही कहना काफी होगा कि मैं उस गुरमा में अपना गुर्मा नहीं तलाश पाया। मेरी पैदाइश और बचपन बल्कि १२ वीं तक की पढाई भी वहीं हुई है। पहले ये उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में था अब नया जिला सोनभद्र बनने के बाद यह इस नए जिले का हिस्सा है। बनारस और मिर्जापुर से लगभग ७५-७० किमी दूर यह चुर्क सीमेंट फैक्ट्री की खदान है। अपार मात्रा में लाइम स्टोन यहाँ अब भी है और फैक्ट्री बेची जा चुकी है। इसे खरीदा भी यहाँ काम करने वाले एक कर्मचारी ने है, जिसका कहते हैं कि एक संकल्प था कि एक दिन वो इस फैक्ट्री को खरीद लेगा। अनेक मजदूर फैक्ट्री बंद होने से भुखमरी का शिकार हैं, मानसिक संतुलन खो चुके हैं या फिर अपने फंसे हुए पैसों के इंतज़ार में कोर्ट का मुंह तक रहे हैं। मकान खंडहर हो चुके हैं, सड़कों पर घास उग आई है, चारों तरफ वीरानी छाई है, पुरानी यादों पर वक्त से ज़्यादा योजनाकारों की बदनीयती की धुल छाई है। हमारे बचपन की सारी शरारतें और खुशियाँ झाड़ियों में मुंह छिपाए सिसक रही हैं। हमें अब वहां कोई नहीं पहचानता, कल-कल कर बहती नदी अब नाले की भी हैसियत नहीं रखती क्योंकि ऊपर एक बांध बना कर उसे रोक दिया गया है। हमारी खुशियों का केंद्र क्लब, जहां हमने बेशुमार फ़िल्में देखीं, रामलीला के बाद जिस मंच पर हमने नाटक मंचित किये, वो अब जेपी के कोई चालीस कर्मचारियों की कैंटीन "अन्नपूर्णा" के नाम से जाना जाता है.... यही हाल चुर्क का है ...बल्कि इससे कुछ बुरा ही क्योंकि लेबर कालोनी ज़मींदोज़ की जा चुकी है ... चनाजोर गरम बेचने वाले कमला प्रसाद और बिमल दोनों भाई अब मर चुके हैं उनकी कोइ फोटो भी नहीं मिलती, सितारगंज खुले बंदी शिविर के साथ ही संपूर्णानंदजी द्वारा निर्मित यहाँ का "संपूर्णानंद खुला बंदी शिविर" अब खुला न होकर दीवारों वाला जिला जेल बनाया जा रहा है। हमारा प्रायमरी स्कूल खँडहर हो रहा है, जबकि इंटर कालेज का नाम अब जय ज्योति इंटर कालेज हो गया है, यहाँ मध्य प्रदेश के रीवां से आया एक नौजवान प्रिंसपल है।
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12 comments:
भाई इरफ़ान,ये सब पढ़ कर बड़ा अजीब लग रहा है...ठीक यही हाल गोरखपुर के फ़र्टिलाईज़र फैक्ट्री का है जहां मैने अपना बचपन गुज़ारा था....सब उजाड़ हो चुका है....वहां की कॉलोनी में शायद सी. आई. एस. एफ.वालों का अस्थाई निवास सा हो गया है....सड़कों पर घास और वो जगहें जो कभी गुलज़ार हुआ करते थे आज बीयावान हैं....मित्र मैं तो आपके साथ गुर्मा जा भी चुका हूँ..जानकर वाकई अफ़सोस हुआ....
तो ख़ुद को रिविजिट कर आए?
इरफ़ान(जी),सबसे पहले नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
आपका लेख पढ़कर दुखी होने की बजाए में मुस्करा रही हूँ, मन मुस्कान से अधिक कुछ किलकित है। कारण? मैं भी सीमेंट फैक्ट्री की उपज हूँ। कभी सोचा न था कि कोई ब्लॉगर साथी भी ऐसे अतीत वाला मिलेगा। सीमेंट फैक्ट्री का जीवन. वहाँ का बचपन आम शहर, कस्बे या गाँव से सर्वथा अलग होता है।
'हमारी खुशियों का केंद्र क्लब, जहां हमने बेशुमार फ़िल्में देखीं, रामलीला के बाद जिस मंच पर हमने नाटक मंचित किये,........'वाह!यह तो मेरा बचपन बोल रहा है।
मुझे तो घुघूत भी उसी क्लब में मिले थे!स्पोर्ट्स क्लब व वहाँ खेलने की सुविधाएँ!
अब आती हूँ आपका दुख साझा करने पर। मेरे बचपन वाली सीमेंट फैक्ट्री भी बन्द हो चुकी है। न जाने उस विशाल कॉलोनी का क्या हुआ होगा।
इन बन्द हुई सीमेंट फैक्ट्रियों की कब्रगाहों पर कभी पुस्तक या लम्बी कहानी लिखने का मन है।
घुघूती बासूती
आपने बड़ा सजीव् वर्णन लिखा है ..
भूतकाल की यादें और वर्तमान ..अलग होते हैं
नये साल की शुभकामना
सादर स - स्नेह
- लावण्या
"हमारे बचपन की सारी शरारतें और खुशियाँ झाड़ियों में मुंह छिपाए सिसक रही हैं। हमें अब वहां कोई नहीं पहचानता",
बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट देखने को मिली.
सजीव चित्रण किया है लेकिन हालत सच में गंभीर है।
इरफ़ान जी...सोनभद्र में और भी बहुत कुछ चल रहा है. सरकारी फाइलों में इस नक्सलवाद का गढ़ बताया जा रहा है....पुलिस को आदिवासिओं के इंकाउन्टर की छोट मिल रही है...अभी हाल में एक अदालत ने कुछ पुलिस कर्मिओं को हत्या का मुलजिम करार दिया. इन बहादुरों ने कई आदिवासिओं को डकैत बता कर मारा था....समय ख़राब है...इनके खिलाफ कुछ कहना भी आपको मावोवादी करार दिया जा सकता है...आप भी इन सब से बखूबी वाकिफ होंगे.
Irphan ji,
aap k photographs ne mithi yadon ko taja to kiya.................
...............lekin dukhi bi kiya
hamarai PRIMARY PATHSHALA GHURMA ko dekh kar................
Pankaj Srivastava.
bhaiya,
sach hai ki gurma me hue parivartanon se bahut se logon k bachpan ki yaden naheen raheen lekin ye bhi sach hai ki bahuton k to bachpan ki yaaden hee naheen baneen. kitne hee to apne khelane-khanen kee umar me crusher field etc. me kaam karke bachpan me hee apne ko jawan maanne lage hain. sab kuchh bahut hee dukhad hai. bhagwan kabhee aise halaat paida karne wale naukarshahon ko maaf na kare.
-ajay prakash
Yadon bhari report...Dil dhoondhta hai fir wohi.
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