हम रामबाबू तैलंग को शायद ही कभी जान पायेंगे। कोई बारह साल पहले हमारे दोस्त सत्या शिवरामन जब अपने वतन सागर गए तो उन्हें अपने यार मुन्ना शुक्ला के ज़रिये इन महाशय के बारे में पता चला। रामबाबू तैलंग तब कोई नब्बे साल के थे और अगर अभी जीवित हैं तो हम उनकी लम्बी उम्र की कामना करते हैं। आकाशवाणी लखनऊ में केन्द्र निदेशक रहे रामबाबू शास्त्रीय संगीत में निपुण हैं और इस क्षेत्र में उनकी दीक्षा पंडित डी वी पलुस्कर के अधीन हुई है। सत्या का कहना है की इस तरह के विलक्षण लोग अपनी व्यक्तित्वगत समस्याओं, असुरक्षा आदि के कारण अपनी इन नैसर्गिक शक्तियों का विकास नहीं कर पाते। शुरू से ही रामबाबू गुज़रे ज़माने के महान गायक कुंदनलाल सैगल के गाये गीतों को हूबहू गानेवालों में गिने जाते रहे हैं. न सिर्फ़ सैगल बल्कि बेगम अख्तर की भी नक़ल वो बखूबी उतार लेते हैं,अपनी ख़ुद की चीज़ें तो वो बेहतरीन गाते ही हैं.
पेश है सागर की एक महफ़िल में गाई रामबाबू की यह ग़ज़ल. यहाँ रामबाबू की एक और खासियत का ज़िक्र करना बुरा न होगा. सत्या बताते हैं की सैगल की कई ऐसी रचनाएं जो की अधूरी थीं, उन्हें रामबाबू ने पूरा लिखा और फिर उन्हें गाया,