दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, December 25, 2007

एक लिस्नर से मुलाक़ात

एफ़एम लिस्नर्स के अनेक रूप हैं. इस बारे में एक पोस्ट यहाँ पहले से है और यहाँ भी एक लिस्नर का ज़िक्र है.
मेरे सहकर्मी , श्रोताओं के पत्रों के प्रति आम तौर पर एक ही रवैया रखते हैं कि उनको शामिल करके कार्यक्रम में पत्र या ईमेल शामिल करने की रस्म निभा दी जाये. फ़ोन-इन प्रोग्राम में भी श्रोता को महज़ एक संख्या मानना इसी का एक हिस्सा है.
अच्छे श्रोता मुझे समय-समय पर मिलते रहे हैं और मुझे हर बार उनसे कुछ नया सीखने और जानने को मिलता है.

बीते इतवार की शाम एक श्रोता रवि कुलभूषण कक्कड़ के साथ गुज़री. कक्कड़जी कई महीनों पहले मेरे श्रोताओं में शामिल हुए हैं और उन्हें रेडियो मैटनी का "दिल ने फिर याद किया" हिस्सा सराहने योग्य लगता है. बीते शनिवार जब स्टूडियो में उनका फोन आया तो एक बार फिर उन्होंने मेरे लम्बित वादे की याद दिलाई. मैंने वादा किया था कि मैं खुद उनसे मिलकर गुज़रे दौर के फिल्म म्यूज़िक और उनके पैशन पर बातें करना चाहता हूँ. बहरहाल फोन में एक अजीब सा अपनापन और अधिकार था कि मैँ इतवार को उनसे मिले बग़ैर नहीं रह सका.

नोएडा में वो अपने बेटे-बहू के साथ रहते हैं. फ़ोटो में बाएं से दूसरा कक्कड़जी का बेटा मुकुल और बिल्कुल दाएं बेटी राधिका. बेटा गोकुल अब उनके गार्मेन्ट्स का एक्स्पोर्ट व्यापार संभालता है. बेटी राधिका, इलाहाबाद के मशहूर कोशकार डॊ.हरदेव बाहरी की बहू है. इत्तेफ़ाक़ से वो इन दिनों यही है और उससे भी मुलाखात हुई. पूरा परिवार संगीत में आकंठ डूबा हुआ है. सबकी अपनी-अपनी रुचियां है‍ लेकिन इतनी भी भिन्न नहीं कि आप एक दूसरे को पहचान न सकें.
कक्कड़ साहब एक सादगी पसंद व्यक्ति हैं और जब से उन्होंने होश संभला तब से वो फ़िल्म संगीत और फ़िल्मों के दीवाने हैं. उनके पास दुर्लभ संगीत का ख़ज़ाना है. वे डीवीडी और वीसीडी पर पुरानी से पुरानी फ़िल्में आज भी लाते-सहेजतेऔर देखते हैं. उनके रहने के कमरे में अलमारियां कैसेट्स, सीडीज़ और डीवीडीज़ से भरी हैं. फिर ये भी नहीं कि अल्लम-ग़ल्लम कूड़ा उन्होने जुटाया है. उनके संग्रह और चयन में उनकी सौंदर्यप्रियता झलकती है. पुराने एलपी और ईपी उनके कानपुर वाले उस घर में ज़ब्त कर लिये गये जिसमे‍ मकानमालिक ने उन पर शरारतन मुक़दमा क़ायम करके उनका जीना मुश्किल कर दिया था. तब उसी घर में फ़िल्म इंडिया के पुराने अंकों की सैकड़ों प्रतियां भी ज़ब्त हो गयी थीं. कहते हैं कि मैने मकान मालिक के हाथ-पैर जोड़े लेकिन कुछ भी वापस नहीं मिला.
नोएडा के जिस मकान में आज वो रहते हैं उसकी मकान मालकिन थोड़ी सहृदय है और वो भी उस संगीत को पसंद करती है जो कक्कड़ जी की दीवारों से छनकर उसके बाथरूम मे पहुंचता है.
कक्कड़जी का ज़्यादातर समय पुरानी फ़िल्में देखने, एफ़एम गोल्ड पर पुराने गाने सुनने और बच्चों के बच्चों की संगत में गुज़रता है. एक संगीत प्रेमी परिवार कितना सहज और आत्मीय हो सकता है इसका अंदाज़ा आपको कक्कड़जी के परिवार से मिलकर होगा. ख़ुद कक्कड़जी का पूरा व्यक्तित्व बच्चों जैसा निश्छल और निर्दोष है. अपनी ही रौ में वो मुझे यह भी बता गये कि किस तरह गानों की तलाश में वो ठगे गये और इसका कोई मलाल भी उन्हें नहीं है. १९३५-४० से १९५० तक के गाने उनकी पसंद की सूची में सबसे ऊपर हैं. गोकुल को हुसेन बख्श, आबिदा परवीन और नुसरत फ़तेह अली खां बहुत पसंद हैं. एक ग़ज़ल सिंगर चेतन दास को वो बड़ी आत्मीयता से याद करते हैं जिसका फिर कोई अल्बम नहीं आया. ये सब ख़ज़ाना गोकुल को साकेत में किसी जॊर्ज के म्यूज़िक स्टोर से मिला करता था, जो कि अब बंद हो गया है.
कक्कड़ जी कहते हैं कि कुछ गाने ऐसे हैं जिन्हें सुनते हुए वो चुपके-चुपके रोते हैं.
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एक किताब, जिसका नाम फ़िल्मी सितारे है वह भी श्री भूषण कक्कड़ ने मुझे दी है. इसकी चर्चा मैं सुबह यहां कर चुका हूं. पेश है कक्कड़ जी से प्राप्त गानों की कुछ संकलित सीडीज़ में से सुरिंदर कौर का गाया फ़िल्म शहीद का गीत. फ़िल्म में कामिनी कौशल और दिलीप कुमार थे. संगीत ग़ुलाम हैदर का और गीत क़मर जलालाबादी का है. इसका वीडियो हाल ही में यहां पेश किया गया है.

बदनाम ना हो जाए मोहब्बत का फसाना...

5 comments:

अजित वडनेरकर said...

कक्कड़ जी से मिलकर अच्छा लगा इरफान भाई...

Anonymous said...

आप के श्रोता भी कितने उच्च श्रेणी के हैं. और भी श्रोताओं से मिलवाइये. कक्कड जी को शुभकामनाएं.

Anonymous said...

RaviKulBhushanji se milwaa kar aapne ek itihaas se bhent karawaa dee hai. Man prasann huaa. Geet bhee adbhut lagaa.

Rajendra said...

कई लोगों को इस बात का आश्चर्य होता है के वो क्या चीज़ है जो पुराने हिंदुस्तानी फ़िल्म संगीत की याद को तरोताज़ा बनाए रख रही है? कक्कड़ साहिब जैसे लोग देश के कोने कोने मे बसे हैं. ऐसे लोगो ने ही हमारी इस विरासत को बचा रखा है. थॅंक यू कक्कड़ साहिब और इरफ़ान भाई आपको साधुवाद कक्कड़ साहिब से मिलाने के लिए.
और हाँ बदनाम ना हो जाए वाला गाना आपके प्लेयर पैर ख़ूब ईको हो रहा है.

मुनीश ( munish ) said...

very nice post keep it up.