दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, December 10, 2007

जो नहीं सुन पाए त्रिलोचन की बातें


त्रिलोचन जी से मुलाक़ात का सचित्र विवरण और उनकी कुछ रचनाएँ आप पहले भी यहां पढ चुके हैं.
लीजिये सुनिये कोई बारह साल पुरानी रिकॉर्डिंग का एक हिस्सा. बातचीत कर रहे हैं समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय और बीच में एक आध सवाल चन्द्रभूषण के हैं. यह जमावडा जनमत के बी-30, शकरपुर वाले ऑफ़िस में रोज़ कुछ नये गुल खिलाता था.
रिकॉर्डिंग की दयनीय अवस्था हमारी मुफ़लिसी और शानदार फ़क़ीरी का दस्तावेज़ है. सुनते समय क्लैरिटी का अभाव महसूस हो तो बूढ-पुरनियों की बात का स्मरण कीजियेगा कि 'घी का लड्डू टेढै भला.'


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Dur. 29Min 43Sec

वरिष्ठ कवि त्रिलोचन से बातचीत का शुरुआती हिस्सा आप सुन चुके हैं. अब सुनिये इस बातचीत का दूसरा हिस्सा. साउंड में क्लैरिटी का अभाव है, इसके लिये हमें खेद है.
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यह पोस्ट 29 और 30 नवंबर, 2007 को यहाँ जारी की जा चुकी ह. त्रिलोचन जी को श्रद्धांजलि स्वरूप पुनः उनकी स्मृति को समर्पित.

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