उस्ताद अल्लारक्खा ने सोलो तबला प्लेयर के तौर पर खूब नाम कमाया.
हालांकि उनसे पहले अहमद जान थिरकवा तबले की लीद निकाल चुके थे और उनके बाद पंडित
चतुरलाल ने भी ख़ूब इम्प्रूवाइज़ेशन्स किये. ये तो बाद में हुआ कि अल्लारक्खा ने तबले
को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खूब झंझोड़ा लेकिन मुंबई में ऑल इंडिया रेडियो के स्टाफ़
बजैये का काम करते हुए उन्होंने कई फ़्लॉप फ़िल्मों में म्यूज़िक डारेक्शन किया.
अल्ला रक्खा कुरेशी और ए आर कुरेशी बतौर म्युज़िक डायरेक्टर जिन फ़िल्मों के लिये
काम कर गये, उनमें से कुछ के नाम यहां दिये जाते हैं.
मां बाप (1944), घर (1945), कुल
कलंक (1945), जीवन छाया (1946), मां बाप की लाज (1946), वामिक़ अज़रा (1946),
हिम्मतवाली (1947), क़िस्मत का सितारा (1947), आबिदा (1947), फ़्लाइंग मैन (1947),
मलिका (1947), यादगार ((1947)), धन्यवाद (1948), ग़ैबी तलवार (1948), हिंद मेल (1948),
जादुई अंगूठी (1948), जादुई शहनाई (1948), आज़ाद हिंदुस्तान (1948), देश सेवा (1948),
अलाउद्दीन की बेटी (1949), जादुई सिंदूर (1949), पुलिसवाली (1949), रूप बसंत (1949),
सबक़ (1950), बेवफ़ा (1952), लैला (1954), नूरमहल (1954), हातिमताई की बेटी (1955),
ख़ानदान (1955), सख़ी हातिम (1955), आलमआरा (1956), इंद्रसभा (1956), लाल-ए-यमन (1956),
अलादीन लैला (1957), परवीन (1957), शान-ए-हातिम (1958), सिम सिम मरजीना (1958), ईद
का चांद (1964) Tuesday, April 29, 2014
Monday, April 28, 2014
उफ़्फ़ कमाल का विनम्र आदमी...भाइयो और बहनोऽऽऽऽऽऽऽऽ
मोहम्मद रफ़ी को गाते हुए
सुनना और फिर बोलते हुए सुनना... ये दोनों बिल्कुल भिन्न अनुभव हैं. अगर आपको
पक्का यक़ीन न हो कि आप रफ़ी को ही बोलते हुए सुन रहे हैं तो आप थोड़ी देर बाद बोलने वाले
से शायद ये कह ही दें कि भाई चुप हो जाओ. 1977 में बीबीसी के सुभाष वोहरा ने रफ़ी
से बातचीत की थी. उफ़्फ़ कमाल का विनम्र आदमी...भाइयो और बहनोऽऽऽऽऽऽऽऽ
Subscribe to:
Posts (Atom)