आलोकधन्वा
विष्णु खरे
सुधाकर पांडेय
सौमित्र मोहन
श्रीलाल शुक्ल
शिवमंगल सिंह 'सुमन'
प्यारेलाल आवारा
परमानंद श्रीवास्तव
नीलकांत
नरेश सक्सेना
नरेंद्र जैन
मुद्राराक्षस
मंज़ूर एहतेशाम
मैनेजर पांडेय
मदन सोनी
कुंवर नारायण
कुमार पंकज
कृष्णा सोबती
कृष्णचंद्र बेरी: हिंदी प्रचारक संस्थान,वाराणसी के संस्थापक
कृष्णबिहारी मिश्र
काशीनाथ सिंह
कामतानाथ
कल्याणमल लोढा
कैलाश नारद
हिमांशु जोशी
हनुमान प्रसाद वर्मा
ग्यानेंद्रपति
गिरीश रस्तोगी
गिरिधर राठी
द्वारिका प्रसाद
देवीदयाल चतुर्वेदी 'मस्त'
देवेंद्र सत्यार्थी
छेदीलाल गुप्त
चंद्रकात देवताले
चंद्रशेखर मिश्र और पत्नी
भानुशंकर मेहता
भगवत रावत
असग़र वजाहत
आचार्य राममूर्ति त्रिपाठी
अखिलेश
Thursday, May 31, 2007
Wednesday, May 30, 2007
मैं दलगत स्वार्थ से ऊपर हूं
हमारे लेखक शायद इस बात से इनकार न करें कि उनके लिये मातृभूमि का विचार एक गौण वस्तु है, कि सामजिक समस्याएं उनके अन्दर उतनी तीव्र सृजनात्मक प्रेरणाएं नहीं जगातीं, जितनी प्रेरणा व्यक्ति के अस्तित्व की पहेलियां; कि उनके लिये कला ही मुख्य चीज़ है--मुक्त और यथार्थपरक कला, जो देश की नियति, राजनीति और दलों से ऊपर है और दिन, वर्ष या युग के प्रश्नों में कोई रुचि नहीं रखती.ऐसी भी कला हो सकती है, क्योंकि ये सोचना कठिन है कि कोई विवकशील प्राणी , जिसका इस पृथ्वी पर अस्तित्व है, चेतन या अचेतन रूप से किसी भी सामाजिक समूह से सम्बद्ध होने से इनकार करेगा,और अगर वे हित उसकी आकांक्षाओं से मेल नहीं खाते हैं तो उनकी रक्षा नहीं करेगा.
हम आपके हैं कौन?
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