tag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post8515789635324915789..comments2023-07-04T14:57:33.767+05:30Comments on टूटी हुई बिखरी हुई: सुनिये कुबेर दत्त की दो कविताएंइरफ़ानhttp://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-6395944686303847882009-12-27T16:54:19.528+05:302009-12-27T16:54:19.528+05:30काफी वर्पों तक आप लोगों के साथ रहने के बाद...आज कु...काफी वर्पों तक आप लोगों के साथ रहने के बाद...आज कुछ इस कदर मुझे उस रहा पर छोड़ा गया...जिसका मैं कभी भी साथी नहीं था...मैने जीवन के एक बड़े फलक को आप लोगों के साथ ही स्थापित किया...लेकिन आज तक यह नहीं समझ पाया हूं...कि आख़िर इस विखराव का मकसद क्या है? या क्या था...कोशिश निरंतर जारी है...लेकिन फिर भी दूर खडा हूं...बहुत दूर जहां से मुझे सिर्फ और सिर्फ आप लोगों की कविता की एक लय मात्र सुनायी देती है...आख़िर यह आवाज़ कब मेरे कानों तक आएगी...मेरे मित्रा....जगमोहन आज़ादjagmohanhttps://www.blogger.com/profile/17007625570284540987noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-14793952442657960262008-06-07T05:14:00.000+05:302008-06-07T05:14:00.000+05:30Umda. Bohat Khuub.Umda. Bohat Khuub.editorhttps://www.blogger.com/profile/17073543434209800940noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-74850918474726802352008-06-01T21:16:00.000+05:302008-06-01T21:16:00.000+05:30कविता बहूत अच्छी लगी साथ साथ विजिवल साउंड मजेदार थ...कविता बहूत अच्छी लगी साथ साथ विजिवल साउंड मजेदार थादीपकhttps://www.blogger.com/profile/08603794903246258197noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-612776459316576132008-06-01T12:45:00.000+05:302008-06-01T12:45:00.000+05:30आपने बरसों बाद उस शख़्स से मुलाक़ात करवा दी जो ज़हन स...आपने बरसों बाद उस शख़्स से मुलाक़ात करवा दी जो ज़हन से उतरा ही नहीं दूरदर्शन के स्वर्णिम काल में कुबेर जी को बहुत इत्मीनान से पत्रों के जवाब देते देखना/सुनना एक रोमांच होता था मेरे लिये.मुक्ता श्रीवास्तव और उनकी जुगलबंदी से ये पत्रावली बहुत ही रोचक बन जाया करती है.हालाँकि कवि (सच्चा कवि)कभी इस बात की परवाह नहीं करता कि उसका लिखा कहाँ तक पहुँचा लेकिन फ़िर भी मैं कुबेरजी को कविता का एक ऐसा ’अनसंग हीरो’ मानता हूँ जिनके साथ वक़्त ने इंसाफ़ नहीं क्या...मज़ा आ गया इस पोस्ट को पीकर.sanjay patelhttps://www.blogger.com/profile/08020352083312851052noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-7618373411991671472008-05-28T21:12:00.000+05:302008-05-28T21:12:00.000+05:30अपने अकेलेपन में शब्दों, छवियों, रंगों से किसी फ़की...अपने अकेलेपन में शब्दों, छवियों, रंगों से किसी फ़कीर की तरह् खेलता.रात-विरात वीरान दिल्ली में दोस्तों को टेरता यह् शख्स आज के वक्त का अजूबा है. इतनी प्रभावशाली कविता के लिये बधाई.Uday Prakashhttps://www.blogger.com/profile/07587503029581457151noreply@blogger.com