tag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post2026979404723071381..comments2023-07-04T14:57:33.767+05:30Comments on टूटी हुई बिखरी हुई: यूँ तो आप मानेंगे नहीं लेकिन फिर भी कहता हूँइरफ़ानhttp://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-41063314726596259922008-01-25T18:41:00.000+05:302008-01-25T18:41:00.000+05:30लोग मानेंगे या नहीं ये उनपर छोड़ें पर आपके कहने के...लोग मानेंगे या नहीं ये उनपर छोड़ें पर आपके कहने के हक पर कोई महोपाध्याय अंगुली उठाए तो हमें मंजूर नहीं। न मानने वालों के न मानने के हक पर भी सवाल नहीं ही लगाया जा सकता...ठीक है कि नहीं।<BR/><BR/>उर्दू और हिंदी को दो लिपियों में एक भाषा मानने से ये भ्रम पैदा होता है जबकि ये दो लिपियों में दो भाषाए हैं इसलिए जाहिर है कि इनकी ध्वनियों में अंतर होगा ही। असान है कि उर्दू लिखें और उसकी लिपि में लिखें तो नुक्तों का भले ध्यान रखें पर अगर देवनागरी में हिंदी लिख रहे हैं तो इन नुक्तों को वहीं छोड़ आएं।मसिजीवीhttps://www.blogger.com/profile/07021246043298418662noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-21963400358200395572008-01-25T09:26:00.000+05:302008-01-25T09:26:00.000+05:30विनय जी आप ठीक कहते हैं. मेरा ख़याल है कि अचला ने य...विनय जी आप ठीक कहते हैं. मेरा ख़याल है कि अचला ने यह नहीं सोचा होगा कि छपाई के दौरान एक प्रूफ़ रीडर भी होता है और इस सूची को फ़ूलप्रूफ़ बनाने के लिये इजाज़त, इत्तेफ़ाक़,ख़ज़ाना, ख़ौफ़, ख़ूँख़ार, ख़ुफ़िया,ग़िलाफ़, ग़ुलाम, ग़ोताख़ोर, तक़ाज़ा, निजात, फ़लसफ़ा, फ़िज़ूल, फ़ारिग़, फ़र्ज़, मज़ाक़, मुताबिक़ आदि शब्दों को एक बार फिर देख लेना ठीक होता.<BR/><BR/>उन्मुक्त जी नुक़्ते नहीं लगाते , उनका यह फ़ैसला बिल्कुल ठीक है. अभय जी मुहब्बत और इश्क़ मैं छुप-छुप के लिखता(पढें करता)हूँ.इरफ़ानhttps://www.blogger.com/profile/10501038463249806391noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-46351059290615669352008-01-25T02:27:00.000+05:302008-01-25T02:27:00.000+05:30नुक़्ते समझाने वाले लेख में नुक़्ते की ग़लती? इज़ा...नुक़्ते समझाने वाले लेख में नुक़्ते की ग़लती? इज़ाजत? सच अचला जी? एक शब्द में दो-दो ग़लतियाँ.<BR/><BR/>ख़ैर, मुद्दे की बात करें तो मेरे ख़याल से अधिकतर पढ़े-लिखे हिंदीभाषी भी ज/ज़ और फ/फ़ में तो फिर भी अंतर कर लेते हैं पर क/क़, ख/ख़, या ग/ग़ में मुश्किल से कर पाते हैं. इसलिए इस मामले में ज़्यादा ज़ोर-ज़बरदस्ती अच्छी नहीं. जो लगा सकते हैं लगाएँ. पर ग़लत जगह नुक़्ता लगाना ज़्यादा भद्दा लगता है. जैसे अचला जी द्वारा 'इजाज़त' में. <BR/><BR/>बस मेरी दो कौड़ियाँ.Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-27104226319009190272008-01-24T11:12:00.002+05:302008-01-24T11:12:00.002+05:30क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्या...क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्याल रखते हैं मगर मैंने आप को भी मुहब्बत को मुह़ब्बत और इश्क़ को इ़श्क़ लिखने नहीं देखा.. ? <BR/>आप को पता है रमदान को ईरान के पूर्व में रमज़ान क्यों कहा जाता है? और व्याकरण व उच्चारण की शुद्धता का बहुत ख्याल रखने वाले अरब लोग पारस को फ़ारस क्यों कहने लगे?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-65167311708560368132008-01-24T11:12:00.001+05:302008-01-24T11:12:00.001+05:30क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्या...क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्याल रखते हैं मगर मैंने आप को भी मुहब्बत को मुह़ब्बत और इश्क़ को इ़श्क़ लिखने नहीं देखा.. ? <BR/>आप को पता है रमदान को ईरान के पूर्व में रमज़ान क्यों कहा जाता है? और व्याकरण व उच्चारण की शुद्धता का बहुत ख्याल रखने वाले अरब लोग पारस को फ़ारस क्यों कहने लगे?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-49049439361628880172008-01-24T11:12:00.000+05:302008-01-24T11:12:00.000+05:30क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्या...क और क़, ज और ज़, फ और फ़, ग और ग़, का तो आप बहुत ख्याल रखते हैं मगर मैंने आप को भी मुहब्बत को मुह़ब्बत और इश्क़ को इ़श्क़ लिखने नहीं देखा.. ? <BR/>आप को पता है रमदान को ईरान के पूर्व में रमज़ान क्यों कहा जाता है? और व्याकरण व उच्चारण की शुद्धता का बहुत ख्याल रखने वाले अरब लोग पारस को फ़ारस क्यों कहने लगे?अभय तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/05954884020242766837noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-10792784576242793622008-01-24T09:09:00.000+05:302008-01-24T09:09:00.000+05:30नुक्ता सही जगह लगा पाना बहुत मुश्किल काम है। खास क...नुक्ता सही जगह लगा पाना बहुत मुश्किल काम है। खास कर मेरे जैसे लोगों के लिये जो उर्दू नहीं जानते हैं। <BR/>मै कोशिश करता हूं कि कहीं नुक्ता न लगाऊं - क्या यह गलत है? <BR/>आपका चिट्ठा लोड करने में बहुत समय लेता है। जब जल्दी में होता हूं तो थोड़ी झुंझलाहट होती है।उन्मुक्तhttps://www.blogger.com/profile/13491328318886369401noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-60756663759026587932008-01-24T08:16:00.000+05:302008-01-24T08:16:00.000+05:30इरफान भाई अच्छा मुद्दा है । मैं रेडियोनामा के ज़र...इरफान भाई अच्छा मुद्दा है । मैं रेडियोनामा के ज़रिए साफ़ और अच्छा बोलने पर श्रृंखला शुरू करने के बारे में सोच रहा हूं । इससे पहले एक बार नुक्तेबाज़ी पर बहस हुई और हमने नुक्तों का समर्थन किया तो कई लोग पत्थर लेकर खड़े हो गये थे । नुक्तों का मुद्दा काफी नुक्ताचीनी लेकर आता है ।Yunus Khanhttps://www.blogger.com/profile/12193351231431541587noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1526125628988206257.post-51837475936038500532008-01-24T00:59:00.000+05:302008-01-24T00:59:00.000+05:30मानना चाहकर भी नहीं मान सकते । एक तो उर्दु आती नही...मानना चाहकर भी नहीं मान सकते । एक तो उर्दु आती नहीं । दूसरे हमारा उच्चारण भी गलत है । तीसरा हम हिन्दी लिखने के लिए तख्ती नामक साधन का उपयोग करते हैं । उसमें यह सुविधा शायद नहीं है । वैसे यह शब्द मैंने आज ही समझा है । <BR/>घुघूती बासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.com