दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Monday, January 11, 2010

गुरमा: कुछ तस्वीरें

अब आइये देखते हैं, गुरमा को तस्वीरों के आईने में । सभी को डबल क्लिक कर के बढाया जा सकता है।

हमारा पोस्ट ऑफिस












नया बना ईको पॉइंट








ये हमारा क्वार्टर था
















हमारा प्रायमरी स्कूल


यहाँ स्कूल की घंटी लटकती थी























बाकी तस्वीरें अगली पोस्ट में ....

Monday, January 4, 2010

मेरी गुरमा यात्रा

अभी तो कुछ वक्त लगेगा कि तस्वीरें आप तक पहुँचाऊ लेकिन ये बताने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं कि मैं पिछले हफ्ते गुर्मा मारकुंडी होकर दिल्ली वापस आ गया। खबर मिली थी कि जेपी सीमेंट वाले हमारी उस कालोनी को उजाड़ने वाले हैं और वहां पर नई आवासीय बस्ती बसाने वाले हैं , इसलिए इस कडाके की सर्दी में भी मय बीवी बच्चों के, पहले राबर्ट्सगंज और फिर गुरमा पहुंचा। बस इतना ही कहना काफी होगा कि मैं उस गुरमा में अपना गुर्मा नहीं तलाश पाया। मेरी पैदाइश और बचपन बल्कि १२ वीं तक की पढाई भी वहीं हुई है। पहले ये उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में था अब नया जिला सोनभद्र बनने के बाद यह इस नए जिले का हिस्सा है। बनारस और मिर्जापुर से लगभग ७५-७० किमी दूर यह चुर्क सीमेंट फैक्ट्री की खदान है। अपार मात्रा में लाइम स्टोन यहाँ अब भी है और फैक्ट्री बेची जा चुकी है। इसे खरीदा भी यहाँ काम करने वाले एक कर्मचारी ने है, जिसका कहते हैं कि एक संकल्प था कि एक दिन वो इस फैक्ट्री को खरीद लेगा। अनेक मजदूर फैक्ट्री बंद होने से भुखमरी का शिकार हैं, मानसिक संतुलन खो चुके हैं या फिर अपने फंसे हुए पैसों के इंतज़ार में कोर्ट का मुंह तक रहे हैं। मकान खंडहर हो चुके हैं, सड़कों पर घास उग आई है, चारों तरफ वीरानी छाई है, पुरानी यादों पर वक्त से ज़्यादा योजनाकारों की बदनीयती की धुल छाई है। हमारे बचपन की सारी शरारतें और खुशियाँ झाड़ियों में मुंह छिपाए सिसक रही हैं। हमें अब वहां कोई नहीं पहचानता, कल-कल कर बहती नदी अब नाले की भी हैसियत नहीं रखती क्योंकि ऊपर एक बांध बना कर उसे रोक दिया गया है। हमारी खुशियों का केंद्र क्लब, जहां हमने बेशुमार फ़िल्में देखीं, रामलीला के बाद जिस मंच पर हमने नाटक मंचित किये, वो अब जेपी के कोई चालीस कर्मचारियों की कैंटीन "अन्नपूर्णा" के नाम से जाना जाता है.... यही हाल चुर्क का है ...बल्कि इससे कुछ बुरा ही क्योंकि लेबर कालोनी ज़मींदोज़ की जा चुकी है ... चनाजोर गरम बेचने वाले कमला प्रसाद और बिमल दोनों भाई अब मर चुके हैं उनकी कोइ फोटो भी नहीं मिलती, सितारगंज खुले बंदी शिविर के साथ ही संपूर्णानंदजी द्वारा निर्मित यहाँ का "संपूर्णानंद खुला बंदी शिविर" अब खुला न होकर दीवारों वाला जिला जेल बनाया जा रहा है। हमारा प्रायमरी स्कूल खँडहर हो रहा है, जबकि इंटर कालेज का नाम अब जय ज्योति इंटर कालेज हो गया है, यहाँ मध्य प्रदेश के रीवां से आया एक नौजवान प्रिंसपल है।