दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Thursday, June 18, 2009

दानिश इकबाल से बातचीत 1


दानिश इकबाल साहब एआइआर दिल्ली में एक जाना माना नाम हैं । वो उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पैदा हुए और आजकल एआइआर के ड्रामा डिवीज़न में काम करते हैं। मैं उन्हें इस बात के लिए जानता हूँ की काम के बीच मुस्कुराया कैसे जाए । आप इस बात के लिए उन्हें जानते हैं कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर यह तय किया कि हिंदुस्तान में एफएम ब्रोडकास्टिंग कैसी होनी चाहिए। आइये आपको सुनाते हैं कि मौजूदा समाजी सियासी हाल पर उनके ख़याल क्या हैं । यह एक दो घंटे लम्बी बातचीत का पहला टुकडा है।

Wednesday, June 17, 2009

दानिश साहब कहते हैं !


दानिश इकबाल साहब एआइआर दिल्ली में एक जाना माना नाम हैं । वो उत्तर प्रदेश के उन्नाव में पैदा हुए और आजकल एआइआर के ड्रामा डिवीज़न में काम करते हैं। मैं उन्हें इस बात के लिए जानता हूँ की काम के बीच मुस्कुराया कैसे जाए । आप इस बात के लिए उन्हें जानते हैं कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर यह तय किया कि हिंदुस्तान में एफएम ब्रोडकास्टिंग कैसी होनी चाहिए। आइये आपको सुनाते हैं कि मौजूदा समाजी सियासी हालत पर उनके ख़याल क्या हैं । यह एक दो घंटे लम्बी बातचीत का छोटा सा टुकडा है।

Tuesday, June 9, 2009

हबीब साब को श्रद्धांजलि !


हबीब तनवीर की मौत के साथ हिंदुस्तान में नाटकों का एक अध्याय ख़त्म हो गया है. उन्होंने अपनी समझ और सूझ के साथ जो भी किया उसका महत्व इसलिए भी रहेगा क्योंकि अब हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं.
हबीब साब ने नया थियेटर नाम का एक ग्रुप बनाया था जिसके सभी कलाकार आम लोग थे. यह ग्रुप छत्तीसगढ़ी बोली में संवाद बोलता था, वहीं का संगीत इस्तेमाल करता था और यह एहसास कराता था की नाटक करना महज़ सीखे हुओ का खेल नहीं है. मुझे संदेह है कि जो लोग इस बात की तारीफ़ करते हैं कि नया थियेटर में स्थानीय बोली इस्तेमाल होती है, वे भी कभी इन नाटकों का मतलब समझ पाए होंगे .कम से कम मैंने जब भी चरनदास चोर या मिट्टी की गाडी या आगरा बाज़ार देखा है, मुझे नाटक के अंत में बस यही लगता रहा कि इसमे हंगामा और शोर ही ज्यादा था. मेरे लिए इस बात को समझना भी मुश्किल है कि लोक कलाकारों को लेकर नाटक करना ही एक ख़ास बात क्यों होनी चाहिए. एक क्षेत्र विशेष की बोली में नाटक करना क्या उस बोली को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाता है ? जिन लोक कलाकारों के साथ हबीब साब ने काम किया उनका क्या हाल है? मेरे लिए हबीब साब के कंट्रीब्यूशन को ठीक से समझना हमेशा ही मुश्किल रहा है.खुद वो बहुत अच्छे एक्टर थे, सजग नागरिक थे, उनकी आवाज़ अद्भुत थी और उनका लिखा एक गीत मैंने उनके ७५वे जन्म दिन पर उनसे ही सुना था जो बहुत दिलचस्प था. फिर भी इस बात के मूल्यांकन की ज़रुरत है कि उनके नया थियेटर के नाटकों ने एक कुतूहल के अलावा भी दर्शकों में कुछ जोड़ा है? खुद छत्तीस गढ़ के सांस्कृतिक जीवन पर उनके नाटकों ने कुछ असर छोडा है?
उम्मीद है कि आनेवाले दिनों में जब हिन्दुस्तानी रंगकर्मी ब्रेख्त से सीख कर अपना रास्ता बनाएंगे तो उसमे चमत्कार से ज़्यादा सरोकार से काम लेंगे. हबीब साब को श्रद्धांजलि.