दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Thursday, April 23, 2009

इकबाल बानो : एक अप्रतिम गायिका



इकबाल बानो को न जानना इस समूचे भारतीय उपमहाद्वीप को न जानना है। मैं ने उन्हें १९८९ में जाना था, उनकी इस नज़्म से, जिसे यहाँ पेश कर रहा हूँ। मदर डेरी के पीछे ध्रुव apartment में जिस दीवानगी के साथ अनुभव सिन्हा, राजेश जोशी, नवीन वर्मा और विमल वर्मा सहित कई दोस्त इसे सुन रहे थे और झूम रहे थे वो न भुलाया जानेवाला वाकया है।

iकबाल बानो १९३५ में दिल्ली में पैदा हुई थीं और शास्त्रीय संगीत में निपुण थीं। ठुमरी, दादरा, उर्दू ग़ज़लें और फारसी ग़ज़लें बड़ी रवानी से गाती थीं। उनकी आवाज़ का ठहराव और उनका कन्विक्शन काबिल-ऐ-तारीफ़ और अश-अश कर देने वाला है। मलिका पुखराज और बेगम अख्तर के साथ वो मेरी प्रिया गायिकाओं में थीं। परसों 21 अप्रेल 2009 को वो हमें छोड गईं. उनके जाने के साथ ही फैज़ को गाने की एक संस्था का अंत हो गया। उनकी कमी हमेशा खटकेगी।



फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' की नज़्म "हम देखेंगे..."


अभी अभी भाई अशोक पान्डे के ब्‍लॉग पर इक़बाल बानो का ज़िक्र देखा. वहीं से साभार इस नज़्म का टेक्स्ट यहाँ जारी कर रहा हून, उन्हें जै बोर्ची कहते हुए.

हम देखेंगे
लाजिम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लौह-ए-अजल में लिखा है
जब जुल्म ए सितम के कोह-ए-गरां
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों के पाँव तले
जब धरती धड़ धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हिकम के सर ऊपर
जब बिजली कड़ कड़ कड़केगी

हम देखेंगे
जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएंगे
हम अहल-ए-सफा, मरदूद-ए-हरम
मसनद पे बिठाए जाएंगे
सब ताज उछाले जाएंगे
सब तख्त गिराए जाएंगे
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो नाज़िर भी है मन्ज़र भी
उट्ठेगा अनल - हक़ का नारा
जो मैं भी हूं और तुम भी हो
और राज करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

Sunday, April 19, 2009

क्या कुछ ब्लॉगरों का यह यात्रा अभियान मेल शोवनिस्ट है?


मुनीश से मेरी दोस्ती अब उतनी ही पुरानी हो चुकी है जितनी राम पदारथ से मेरी दुश्मनी. इस शुरुआती लाइन के बाद मैं सीधे मुद्दे पर आता हूँ जिसका सम्बन्ध इन दिनों ज़ोर-ओ-शोर से चल रहे एक यात्रा अभियान से है और जिसका सूत्रपात भाई मुनीश ने किया है. अगर यह अभियान सम्भव हो पाता है, जिसकी संभावना अब बलवती होती दीख रही है, तो ब्लोगरों का एक बड़ा समुदाय यह कह कर इसे लांछित करेगा (और एक हद तक मैं भी उस समुदाय में शामिल पाया जा सकता हूँ ) कि इस योजना को मोटर सायकिल पर प्रस्तावित किया गया है जो kइ भारत जैसे देश में अब भी महिलाओं का प्राथमिक वाहन नहीं है. इस प्रकार चाहे अनचाहे महिला ब्लोग्गेर्स को इस muhim से बाहर रखने की उनकी इच्छा पर उंगली उठाई जानी चाहिए. काफिले में चार पहियों की गाडी अभी ठोस रूप से शामिल नहीं की गई है. क्या इसमे मुनीश की उस dhankee भावना का हाथ है, जिसमे सुनते हैं की वो औरतों को घरेलू काम के लिए ज़्यादा सक्षम पाते हैं?
मित्रो इस ऐतिहासिक यात्रा को बेदाgh बनाने के लिए ज़रूरी है कि इसके ऊपर संभावित lanchhanon को जल्द अज जल्द दूर करने का प्रयास किया जाए.

Photo curtesy http://www.motorcycle-friendly.com

Hindi Writing Tool ke abhaav me likha gaya.

Thursday, April 9, 2009

उट्ठा है तूफान ज़माना बदल रहा

23 साल पहले 25 लोगों ने उदय भाई की अगुआई में एक कैसेट निकाला था. पीछे की कहानी विमल भाई सुनाएँगे. आप मेरी तरफ से ये गीत सुनिए.

Monday, April 6, 2009

सस्ता शेर से कुछ सदस्य हटाए जाएंगे ???

सस्ता शेर को शुरू करने के पीछे इरादा यही था कि इसे ओरल ट्रेडीशन की शोकेसिंग का अड्डा बनाया जाय। मैं ने इसे बनाते ही पहला इनवाईट ठुमरी वाले विमल भाई को भेजा और उन्हों ने फ़ौरन स्वीकार किया और मैं खुश हुआ क्योंकि मेरे ख़याल से वही इसके पहले और आख़िरी कन्ट्रीब्यूटर होने चाहिए थे। जिस रफ़्तार से इस ब्लॉग ने यारों को जाकर पकडा उसमें मुझे कोई नई बात नहीं दिखती । मुनीश ठीक ही कहते हैं कि आज यह ब्लॉग एक अनोखा ब्लॉग बन चुका है । मुनीश या शायद आप भी नहीं जानते होंगे कि बड़ी संख्या में टीपू सुलतान लोग भी इस ब्लॉग पर आने वाली नई पोस्टों के इंतेज़ार में रहते हैं और टीपने के अपने जन्म सिद्ध अधिकार का उपयोग करते हैं और इस या उस उपयोग में इन शेरों को लाते हैं। एक मोबाइल कंपनी का क्रियेटिव राइटर भी यहाँ से कंटेंट उठा कर एस एम एस बनाता है । हम सब उसकी और उस जैसे टीपुओं की खुशी में शामिल हैं क्योंकि सबको खुश रहने का हक़ जो है !
वैसे तो हम भी मौलिकता की चक्की नहीं पीस रहे हैं।
यहाँ मैं मुनीश के ललकारने पर एक ऐलान जारी करने से ख़ुद को नहीं रोक पा रहा हूँ कि सस्ता शेर से वो सभी सदस्य अपनी सदस्यता ख़त्म करवा लें जो कुछ भी सक्रियता नही दिखा रहे हैं. आख़िर नाम लिखा लेने भर से तो धर्म पूरा नहीं होता!
मुनीश और रितेश जी को धन्यवाद भी पहुंचे.