दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Friday, November 2, 2007

रेडियो रेड और क़िस्सागोई: उदय प्रकाश की कहानी दरियाई घोड़ा

हमारे यहां क़िस्सागोई की पुरानी परंपरा है. पिछले कई बरसों से योरप और अमेरिका के क़िस्सागो दिल्ली आ रहे हैं और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, इंडिया हैबिटैट सेंटर और ब्रिटिश लायब्रेरी जैसे सुरुचिपूर्ण अड्डों पर कथावाचन करके हमारे मुंह आईनों की तरफ़ घुमा रहे हैं. दो-एक दिन इन हलचलों का असर अख़बारों के पेज थ्री पर रहता है और तस्वीरें छपती हैं फिर सब कुछ सामान्य हो जाता है. वो लोग तो यहां तक कह कर चले जाते हैं कि आपके यहां कथावाचन मर रहा है, यह सुनकर हमारे लोग कभी नॊस्टैल्जिया तो कभी सेंस ऒफ़ प्राइड से भर जाते हैं. जिस एक चीज़ की कमी रह जाती है, वो है शर्म. इसी शर्म से उन्हें बचाने के लिये मेरी संस्था रेडियो रेड वाचिक परंपरा को बचाने और पुनर्जीवित करने में लगी है. पिछले दस वर्षों से जारी हमारी कोशिशों में हिंदी की संस्थाओं और संस्कृति संरक्षण के पैरोकारों ने झूठी तसल्ली भी नहीं जोड़ी है. इस वाचिक परंपरा की याद जब विदेश में सक्रिय storytellers करते हैं तो ये संस्थाएं या संबंधित लोग तसल्ली से भर जाते हैं कि देखो जो आज पश्चिमी देशों में हो रहा है उसे हम पांच हज़ार साल पहले कर चुके हैं. और हमें इस तसल्ली में सुनाई देता है कि विमान का आविष्कार भले ही हाल के बरसों में हुआ हो हम तो पांच हज़ार साल पहले से पुष्पक विमान उड़ाते आ रहे हैं. हमारे मंत्रों से बारिश और आग संभव है. बहरहाल, हमें तो इस तसल्ली से कुछ ज़्यादा चाहिये. सैकड़ों मह्त्वपूर्ण किताबें आज not to issue का बिल्ला लगाए पुस्तकालयों में पड़ी हैं या फिर दीमकों का शिकार हो रही हैं, तमाम दिलचस्प कहानियां, कविताएं, नज़्में, ग़ज़लें, डायरियां, संस्मरण, व्यंग्य, यात्रा-वृत्तांत, रेखाचित्र, रहस्य रोमांच की कहानियां और प्रेरणाप्रद प्रसंग- आत्मकथाएं...आदि सुनाए जाने की राह देख रही हैं. विश्व-प्रसिद्ध पुस्तकालयों ने हमारी तमाम भारतीय भाषाओं की किताबों की माइक्रोफ़िल्मिंग करा ली है और उनके डिजिटल संस्करण करके सुरक्षित कर लिया है. वो दिन दूर नहीं है कि यह सब कुछ वे हमें शॊपिंग मॊल्स में थोड़े वैल्यू एडीशन के साथ बेचने लगेंगे. छपी हुई किताब को सुनी जा सकने वाली किताब बना देना भी वैल्यू एडीशन का एक रूप होता है, ये तो आप जानते ही हैं. तो भाइयो, एक जुनून है जिसमें हम क़िस्सागोई, कथावाचन, वाचन या Storytelling कर रहे हैं चार लोगों की एक छोटी सी टीम में आज डेढ़ दर्जन वाचक ,Narrators, Voice Over Artistes हैं और जो परंपरा संरक्षकों का तमग़ा हासिल करने की इच्छा से ऊपर ही रखते हैं अपनी मौज और इस काम से मिलने वाले सुख को. इस मुहिम में आप हमारे आदि सहयोगी हैं और नहीं लगता कि जल्दी हमारे हौसले पस्त पड़ेंगे. तो पेश है वाचिक परंपरा को पुनर्जीवित करने के प्रयासों से एक बानगी. उदय प्रकाश उन कथाकारों में से हैं जिनकी कहानियां अपने कथ्य और बनावट के अलावा तर्ज़े बयां के लिये भी याद की जाती हैं. उनकी अनेक कहानियां सुनाते हुए मुझे कभी नहीं लगा कि रवानी में कोई रुकावट आ रही है, आपको भी लगा होगा . दूसरे की भाषा आपकी ज़बान पर जब चढ़ती है तो मीर याद आते हैं. इस पेशकश के शुरू में अरशद इक़बाल और अपर्णा घोषाल की आवाज़ें हैं. Duration: 46min 46sec क़िस्सागो: मुनीश

5 comments:

Ashok Pande said...

बेहतरीन कलात्मक काम है। इस काम में कितनी मेहनत लगी है इसे ध्यान से पूरा सुन लेने के बाद पता चलता है। शुक्रिया इरफान। शुक्रिया मुनीश। यह एक ज़बर्दस्त शुरूआत है। Pioneering work.

Yunus Khan said...

अभी नहीं सुना । रविवार को सुनेंगे ।

रवि रतलामी said...

हिन्दी ब्लॉगिंग का एक और पहला कमाल. जाहिर है, संभावनाएँ अनंत हैं. ऐसे अनंत, नए नायाब प्रयासों के लिए शुभकामनाएँ. कुछ बच्चों की कहानियों/कविताओं के भी पॉडकास्ट उपलब्ध करवाएँ तो मजा आए.

रवि रतलामी said...

इसका डाउनलोड लिंक भी दें ताकि हमारे जैसे ऑफलाइन जीवी इसे डाउनलोड कर फुरसत में सुन सकें, और दूसरे जरिए, मसलन अपने आई-पॉड या एमपी-3 कम्पेटिबल सेलफ़ोनों इत्यादि से भी सुन सकें.

सुनीता शानू said...

बहुत अच्छा लगा...शुक्रिया...